Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir

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Page 14
________________ विक्रम सं. 1168 में गुणभद्रसूरि ने "पासणाहरिय' की रचना की। प्राकृत गद्य-पद्य में लिखी गई इस रचना में समासान्त पदावलि और छन्द की विविधता देखने में आती है। पार्श्वनाथ के सम्पूर्ण चरित्र को इसमें निबद्ध किया गया है। गुणचन्द्रगणि ते वि. सं. 1139 में "महावीर चरिम' भी लिखा यामह12025 श्लोक प्रमाण है। इसमें आठ प्रस्तात्र हैं, जिनमें से आधे भाग में भगवान महावीर के पूर्वभवों का वर्णन है, शेष में वर्तमान जीवन का वर्णन है। अभयदेवसूर के शिष्य श्री चन्द्रप्रभ महत्तर ने वि. सं. 1127 में "सिरिजयचंद के वलिंचरिय' की रचना की। इस चरिय काव्य का उद्देश्य जिनपूजा का माहात्म्य प्रकट करना है। इसमें अष्टद्रव्यों से पूजा किए जाने का उल्लेख है। प्रत्येक द्रव्य से पृथक्-पृथक् पूजा का फल बतलाने के लिए कथानकों का प्रणयन किया गया है। विक्रम सं. 1199 में माघशुक्ल दशमी गुरुवार को पूर्णता को प्राप्त "सुपासनाहचरिय" भगवान सुपार्श्वनाथ पर लिखित एक सुन्दर काव्य है। इसके रचयिता लक्ष्मण गणि हैं। उन्होंने आठ हजार गाथाओं में इसकी रचना पूर्ण की। समस्त काव्य तीन भागों में विभक्त है। पूर्वभत्र प्रस्ताव में सुपार्श्वनाथ के पूर्वभवों का वर्णन किया गया है और शेष प्रस्तावों में उनके वर्तमान जीवन का वर्णन है। ___1270 ई. के लगभग हुए श्री देवेन्द्रसूरि ने "सुदंसण चरिंय" काव्य लिखा। इस में चार हजार पद्य हैं, जो कि आठ अधिकार और सोलह उद्देसों में विभक्त हैं। ग्रन्थ का नाम नायिका के नाम पर है। 1513 ई. में जिनमाणिक्य अथवा उनके शिष्य अनन्त हंस ने "कुम्मापुत्तरिय'' की रचना की। इसमें 198 प्राकृत पद्मों में कूर्मापुत्रचरित है। उक्त काव्यों के अतिरिक्त चन्द्रप्रभमहत्तर (1070ई) द्वारा रचित "चन्दके.. वली चरिय", वर्द्धमान सूरि ( 1085ई.) द्वारा रचित 'मनोरमाचरिय' तथा 'आदिनाहचरिय', देवचन्द्रसूरि द्वारा रचित मंतिनाह चरिंय, शान्तिसूरि (1104ई.) कृत 'पुहवचन्दरिय', मलधारी हेमचन्द्र कृत 'नेमिनाहचरिय', श्रीचन्द्र ( 1135ई.) कृत 'मुणिसुन्वयसामिचरिय' देवेन्द्र सूरि के शिष्य श्रीचन्द्रसूरि ( 1157ई.) कृत 'सणयकुमारचरिय', हरिभद्र कृत 'चन्दण्यहचरिय', 'मल्लिनाहचरिय' तथा 'नेमिनाहचरिय', सोमप्रभसूरि कृत 'सुमतिनाहचरिय' तथा मुनिभद्र (1353ई.) कृत्त 'संतिनाहचरिय' लथा नेमिचन्द्रसूरिकृत 'अनन्तनाहचरिय' प्रमुख प्राकृत चरित काव्य हैं। 8 डॉ. जगदीशचन्द्र जैन : प्राकृत साहित्य का इतिहास पृ. 568. 569

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