Book Title: Nemi Nirvanam Ek Adhyayan Author(s): Aniruddhakumar Sharma Publisher: Sanmati Prakashan View full book textPage 9
________________ प्राक्कथन डॉ.विश्वनाथ भट्टाचार्य पूर्व प्रोफेसर एवं अध्यक्ष संस्कृत एवं पालि विभाग काशी हिन्दू विश्व विद्यालय वाराणसी भारतीय संस्कृति के सर्वाङ्ग ज्ञान के लिए वैदिक, जैन और बौद्ध तीनों भारतीय धाराओं से समादृत वाङ्मय का परिशीलन अपरिहार्य है। जैन कवियों ने संस्कृत की महनीय सेवा की है, किन्तु उसका सही मूल्यांकन अद्यावधि वाञ्छित रूप में हुआ नहीं है। भगवान् नेमिनाथ जैन परम्परानुसार बाईसवें तीर्थंकर हैं। उन्हें भगवान् श्रीकृष्ण का चचेरा भाई माना गया है। भगवान् नेमिनाथ का जीवन चरित यद्यपि पौराणिक है तथापि उनकी ऐतिहासिकता को झुठलाया नहीं जा सकता है। भारतीय वाङ्मय में नेमिनाथ पर अनेक काव्य लिखे गये हैं। डॉ० अनिरुद्ध कुमार शर्मा ने उनका संक्षिप्त परिचय इस ग्रन्थ में दिया है। वाग्भटकृत नेमिनिर्वाण भगवान् नेमिनाथ पर लिखा गया प्रथम महाकाव्य है। अतः इसका विशेष महत्त्व है। लेखक डॉ.शर्मा ने इस प्रबन्ध में नेमिनिर्वाण का साङ्गोपाङ्ग अध्ययन किया है। जिसको आठ अध्यायों में विभक्त किया है। प्रथम अध्याय में बैन चरितकाव्यों के उद्भव एवं विकास का उल्लेख है। काव्यस्वरूप, काव्य के भेद एवं जैन चरित काव्यों की सामान्य विशेषताओं का उल्लेख करते हुए, सातवीं शताब्दी ले लेकर बीसवीं शताब्दी पर्यन्त लिखे गये जैन चरित काव्यों का ऐतिहासिक दृष्टि ले कालानुक्रमिक विवेचन किया गया है। इसी अध्याय में विभिन्न भाषाओं में उपलब्ध नेमिनाथ विषयक साहित्य का परिचय है और नेमिनिर्वाण महाकाव्य के रचयिता आचार्य वाग्भट प्रथम के जन्मस्थान एवं स्थितिकाल आदि का निर्णय किया गया है। द्वितीय अध्याय में ग्रन्थ की कथावस्तु, कथानक के स्रोत तथा उसमें किये गये परिवर्तन एवं परिवर्धन पर प्रकाश डाला है। तृतीय अध्याय में ग्रन्थ के अङ्गभूत एवं अङ्गीरस का विवेचन करके नेमिनिर्वाण को महाकाव्य सिद्ध किया गया है और अन्त में छन्द एवं अलंकार योजना का समावेश है। चतुर्थ अध्याय में भाषा, शैली और गुणों पर प्रकाश डाला है। पञ्चम अध्याय में महाकाव्य के वर्णनीय विषयों के अन्तर्गत देश, नगर एवं प्रकृति आदि का मनोरम चित्रण प्रस्तुत किया है। षष्ठ अध्याय में दर्शन एवं संस्कृति का विवेचन है। सप्तम अध्याय में नेमिनिर्वाण महाकाव्य पर पूर्ववर्ती ग्रन्थों के प्रभाव एवं पश्चातवर्ती ग्रन्थों पर नेमिनिर्वाण महाकाव्य के प्रभाव की चर्चा की गई . है। अष्टम अध्याय में शोध के निष्कर्षों का विवेचन कर जैन संस्कृत साहित्य में इस ग्रन्थ का प्रणयन कर संस्कृत साहित्य की भी वृद्धि की है। मैं अ करता हूँ कि डॉ. शर्मा की लेखनी से इसी प्रकार के अन्य ग्रन्थों का प्रणयन होगा, जिससे वाङ्मय भाण्डागार और अधिक समृद्ध हो सकेगा। डा०विश्व नाथ भट्टाचार्यPage Navigation
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