Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 13
Author(s): Gaurishankar Hirashankar Oza
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 7
________________ कवि जटमल रचित गोरा बादल की बात ३६३ होकर पद्ममावती देना स्वीकार किया और रानी को लेने के लिये खवास भेजकर कहलाया कि मेरे जीवन की आशा करती हो तो एक क्षण भी विलंब मत करो। रानी ने राजा से कहलाया कि प्राण चले जायँ तो भी अपनी स्त्री दूसरे को नहीं देनी चाहिए। मृत्यु से कोई नहीं बच सकता, इसलिये प्राण देकर संसार में यश लेना चाहिए, मुझको देने में आप कलंकित होंगे और मेरा सतीत्व नष्ट होगा। फिर रानी पद्मावती पान का बीड़ा लेकर बादल के पास गई और कहा कि अब मेरी रक्षा करनेवाला कोई नहीं दीखता, केवल तुझसे ही आशा है। उसने उसको कहा कि आप गोरा के पास जाय, मैं बीड़ा सिर पर चढ़ाता हूँ, निश्चित रहें। फिर वह तुरंत ही गोरा के पास गई और पति को विपत्ति से छुड़ाने के विचार से कहा कि मंत्रियों ने मुझे बादशाह के पास जाने की सलाह दी है। इस स्थिति में जैसा तुम्हारी समझ में आवे वैसा करो जिससे राजा छूटे। गोरा ने बीड़ा उठाकर कहा कि अब आप घर जायें। फिर गोरा और बादल परस्पर विचार करने लगे कि बादशाह की अपार सेना से किस प्रकार युद्ध किया जाय। बादल ने कहा कि पाँच सौ डोलियों में दो दो योद्धा बैठे और चार चार योद्धा प्रत्येक डोली को उठावें। उन ( डोलियों ) के भीतर सब भाँति के शस्त्र रख सिँगारे हुए कोतल घोड़े आगे कर उनको बादशाह के पास ले जाकर कहें कि हम पद्मिनी को लाए हैं, पर कोई तुर्क उसको देखने के लिये आने की इच्छा न करे । अनंतर योद्धा लोग डोलियों को छोड़ शस्त्र धारण करें, रण में पीठ न दिखाकर राजा के बंधन काटें और शाह का सिर उड़ावें। बादल के इस कथन को सभी ने स्वीकार किया। डोलियाँ सुसज्जित हो जाने पर मखमल आदि के कीमती पर्दे उन पर लगाए गए, फिर उनमें सशस्त्र वीरों को बिठला राजपूत वीर ही उन्हें अपने कंधों पर उठाकर ले चले। एक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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