Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 13 Author(s): Gaurishankar Hirashankar Oza Publisher: Nagri Pracharini Sabha View full book textPage 6
________________ ३६२ नागरीप्रचारिणी पत्रिका राजा ने जब देखा कि सुलतान डेरे उठा रहा है तब उसको गढ़ पर बुलाया। वह (बादशाह ) अपने साथ दस-बीस बहादुरों को लेकर कपटपूर्वक वहाँ पहुँचा। राजा ने शाह की बड़ी खातिर की। बादशाह ने राजा से कहा कि तुम मेरे भाई हो गए हो, मुझे पद्मिनी दिखलाओ ताकि मैं घर लौट जाऊँ। रत्नसेन चहुवान ने पद्मिनी को कहा कि सुलतान ने तुमको बहिन बनाया है सो तुम उसको अपना मुँह दिखला दो। इस पर उसने अपनी एक अत्यंत सुंदरी दासी को अपने वस्त्राभरण पहिनाकर बादशाह के पास भेजा जिसे देखकर वह मूर्छित होकर गिर पड़ा। राघव ने शाह से कहा कि हे सुलतान, यह पद्मिनी नहीं है, ऐसा कहकर उसने पद्मिनी के रूप, गंध आदि की प्रशंसा की। इस पर शाह ने राजा का हाथ पकड़कर कहा कि तुमने मुझसे कपट कर अन्य स्त्री दिखलाई है। पद्मिनी से कहो कि वह मुझे अपना मुंह दिखलावे । तब पद्मिनी ने खिड़की से अपना मुँह बाहर निकाला, जिसे देखते ही शाह ने गिरते गिरते एक स्तंभ को पकड़ लिया । फिर उसने कहा-भाई रत्नसेन क्षण भर के लिये आप मेरे डेरे पर चलो, ताकि मैं भी आपका सम्मान करूँ। सुलतान वहाँ से लौटकर रत्नसेन के साथ पहले दरवाजे पर पहुँचा, उस समय उस (सुलतान ) ने उसको लाख रुपए दिए । दूसरे दरवाजे पर पहुँचने पर उसने उसको दस किले देकर लालच में डाला। फिर इस प्रकार वह राजा को लुभाकर उसे किले से बाहर ले गया और उसे कपटपूर्वक पकड़ लिया, जिससे गढ़ में आतंक छा गया। बादशाह राजा को नित्य पिटवाता, चाबुक लगवाता और कहता कि पद्मिनी को देने पर ही तुझे आराम मिलेगा। चित्तौड़ के निवासियों को दिखलाने के लिये राजा को दुर्ग के सामने लाकर लटकवाता, जिससे वहाँ के निवासी दुखी हो गए। अंत में मार खाते हुए राजा ने कायर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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