Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 13
Author(s): Gaurishankar Hirashankar Oza
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ ३६० नागरीप्रचारिणी पत्रिका देखकर राजा को राघव के विषय में संदेह उत्पन्न हुआ। निदान उसने चित्तौड़ लौट आने पर उसको वहाँ से निकाल दिया । तब वह साधु का भेष धारण कर दिल्ली पहुंचा, जहाँ अल्लावदी (अलाउद्दीन) बादशाह राज्य करता था। एक दिन बादशाह शिकार खेलने को चला, उस समय राघव चेतन ने अपना वाद्य बजाया, जिसकी ध्वनि सुन वन के सब जानवर उसके पास चले गए और शाह को कोई जानवर नहीं मिला। अलाउद्दीन भी उस वाद्य की ध्वनि सुन वहाँ पहुँचा और वहाँ का चरित्र देख उसे आश्चर्य हुआ। फिर वह घोड़े से उतरकर राघव के पास गया और उसके राग से प्रसन्न हो गया। उसने उसको अपने यहाँ चलने को कहा। पहले तो राघव चेतन ने जाना स्वीकार न किया, परंतु अंत में बादशाह का आग्रह देख वह उसके साथ हो गया। उसकी गानविद्या की निपुणता से बादशाह का प्रतिदिन उस पर स्नेह बढ़ने लगा। एक दिन बादशाह के पास कोई व्यक्ति खरगोश लाया । उसके कोमल अंग पर हाथ फेरते हुए बादशाह ने राघव से पूछा कि इससे भी कोमल कोई वस्तु है ? उसने उत्तर दिया कि इससे हजार गुनी कोमल पद्मिनी है। शाह ने उससे पूछा कि स्त्रियाँ कितनी जाति की होती हैं। राघव ने स्त्रियों की चार जातियों के नाम चित्रिणी, हस्तिनी, शंखिनी और पद्मिनी बतलाए, और उनके लक्षणों का वर्णन करते हुए सबसे पहले पद्मिनी जाति की स्त्री को बढ़ावे के साथ प्रशंसा की; जैसे कि उसके शरीर के पसीने से कस्तूरी की सी वास का फैलना, मुख से कमल की सी सुगंध का निकलना और भैौरों का उसके चारों और मँडराना आदि। तत्पश्चात् चित्रिणी, हस्तिनी और शंखिनी जाति की स्त्रियों का वर्णन करते हुए शंखिनी की बुराइयाँ बतलाने में उसने कसर नहीं रखा। फिर शश, मृग, वृषभ और तुरंग जाति के पुरुषों के लक्षण बताते हुए शश जाति का पुरुष पद्मिनी के, मृग Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 118