Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 13 Author(s): Gaurishankar Hirashankar Oza Publisher: Nagri Pracharini Sabha View full book textPage 5
________________ कवि जटमल रचित गोरा बादल की बात ३६१ जाति का चित्रिणी के, वृषभ जाति का हस्तिनी के और तुरंग जाति का पुरुष शंखिनी के लिये उपयुक्त बतलाया। बादशाह ने राघव की बात सुनकर कहा कि हमारे अंत:पुर में दो हजार स्त्रियाँ हैं। उनको महल में जाकर देखो। उसने उनको प्रत्यक्ष देखना अस्वीकार कर तेल के कुंड में उन सुंदरियों के प्रतिबिम्ब देखकर कहा कि इनमें चित्रिणी, हस्तिनी और शंखिनी जाति की स्त्रियाँ तो बहुत हैं, पर पद्मिनी जाति की एक भी नहीं है। इस पर सुलतान ने कहा कि जहाँ कहीं हो वहाँ ले जाकर मुझे पद्मिनी जाति की स्त्री शीघ्र दिखलाओ। उसके लिये जो माँगो वह मैं तुम्हें दूंगा। उसने कहा कि पद्मिनी समुद्र के परे सिंहलद्वीप में रहती है। समुद्र को देखकर कायरों के हृदय कंपित होते हैं। राघव का यह कथन सुनकर सुलतान ने पद्मिनी के लिये प्रस्थान कर समुद्र के किनारे पड़ाव डाला और पद्मिनी को देखने के लिये हठ किया। तब राघव ने सुलतान से कहा कि पद्मिनी समीप में तो रत्नसेन चहुवान के पास है। यह सुनकर शाह ने बड़ी भारी सेना के साथ रत्नसेन पर चढ़ाई कर दी और वह चित्तौड़ के समीप आ ठहरा। वह १२ वर्ष तक किले को घेरे रहा, परंतु रत्नसेन ने उसकी एक न मानी। तब उस (सुलतान ) ने राघव से पूछा कि अब क्या करें। चित्तौड़ का गढ़ बड़ा बाँका है, वह बलपूर्वक नहीं लिया जा सकता। राघव ने सुलतान से कहा कि अब तो कपट करना चाहिए; डेरे उठाकर लौटने का बहाना करना चाहिए, जिससे राजा को विश्वास हो जाय। फिर सुलतान ने अपने खवास को भेजकर रत्नसेन से कहलाया कि “मैं तो अब लौटता हूँ। मुझे एक प्रहर के लिये ही चित्तौड़ का किला दिखला दो और मेरे इस वचन को मानो तो मैं तुम्हे सातहजारी (मंसबदार) बना दूं, पद्मिनी को बहिन और तुम्हें भाई बनाऊँ तथा बहुत से नए इलाके थी तुम्हें दूं।" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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