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धूलाराधना
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व्याकरण शुद्ध प्रयोग न होने से बहोत सी भूर्जे होजाना नितरां संभवनीय है, तथा भाषांतर में भी अज्ञानवश प्रमाद रहे होंगे.
विजयोदया टीकामें दशस्थितिकसके विषयका विवेचन करते समय अपराजित सूरीने आचारांगादि वेषां बर मथोंके जो प्राकृत भाषाके श्लोक दिये है उनका मराठी अनुवाद करके श्री प्रो. ए. एन. उपाध्यायजीने मेरी प्रार्थनासे भेज दिया था उसका मैने हिंदी अनुवाद किया है अतः श्री. प्रोफेसरसाहेबका में अतिशय आभारी हूं.
सज्जन पाठकवर्ग तथा विद्वर्गको मेरी सविनय यह प्रार्थना है कि इस संशोधन, अनुवादावि कार्य में रहे हुए कान करके मेरेको उपकृत बनावे.
जैन साहित्यकी सेवा मेरे द्वारा आजन्म होती रहे ऐसी भीजिनेंद्रदेव से प्रार्थना करके मैं यह प्रस्तावना पूर्ण करता हूँ.
जिनवाणीका तुच्छ सेवक -- जिनदास पार्श्वनाथ फडकुले.
ता. १-११-२५
वीर सं० २४६२ कार्तिक शुद्ध ५ मी.
प्रस्तावना
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