Book Title: Mularadhna
Author(s): Shivkoti Acharya, 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 12
________________ मूलाराधना मा प्रस्तावना सेठेजीके इस प्रशंसनीय उद्योगको कोन सहएय मनुष्य प्रशंसा न करेगा. तथा उनको हर्षसे धन्यवाद न देगा। परस्त महाम ग्रंथ सेठजीके सुवर्णजयंती अर्थात् वर्षवृद्धि महोत्सबके लिये जो श्री महावीर जिनविप्रतिष्ठा इस सालमें हुई उस समय अडे समारोह के साथ प्रकाशित करनेका सेठजीका विचार था परंतु उस समय मुद्रणकार्य पूर्ण न हो सका इस लिये कार्तिक शुद्ध पंचमीके दिन इसका प्राणप्रतिष्ठापूर्वक प्रकाशन किया गया है. इस महान मन्थके प्रकाशनके लिये पूना मांडारकर.प्राव्य षियासंशोधक संस्थाने अपराजितसूरिकृत विजयोध्या टीकाकी दो प्रति भेज दी थी उन प्रतियोंसे हमने प्रेसकॉपी तयार की, ये दो प्रति प्रायः शुद्ध और सुवाच्य । थी. इस संस्थाने ये पुस्तकें भेजकर हमको अत्यंत उपकृत किया है अतः हम उसको अन्तःकरणसे धन्यवाद देते हैं. श्री. प. प. सरस्वती भवन मुंबई से हमको श्रीमान् पं. रामप्रसादजी शास्त्रीने मूलाराधनादर्पण पूर्वार्ध पांच आश्वास पूर्ण ग्रह अंथ और श्री अमितगति आचार्यकृत संस्कृत श्लोकानुयादरूप भगवती आराधना मन्ध ऐसे दो ग्रंथ भेजे थे. इन दो प्रद्यक रामको अनिदान समारा गिला. शशितगनि गावती आराधनाके प्रथमके १९ श्लोक मल ग्रंथ में नहीं थे परंतु बीसवे श्लोकसे आगे ग्रंथ पूर्ण है. हमने अन्यत्र इसके प्रारंभके १९ श्लोक प्राप्त करने के लिये प्रयत्न किया था परंतु प्राप्त नहीं हुए. इन यो ग्रंथोंको भेज कर इमको पं. रामप्रसादजी शास्त्रीने बहुत उपकृत किया है, वहमेशा ऐसा साहाय्यदान हमको करते है अत: आपके म अत्यंत आभार पूर्वक धन्यवाद मानते हैं. कारजासे मूलाराधना दर्पण पूर्वाध तथा कनरार्ध श्रीगंत रतनलाल नरसिंगसा राऊल इन्होने भेजा था परंतु पूर्वाध में प्रारंभका प्रथमपत्र नहीं है. चौदहये पत्रसे १५ वे पव्रतक ६ पत्र नही है.तथा ३१ वा पत्र नहीं है. अतः हमको इस पूर्वार्धका विदोष उपयोग नहीं हुआ. बंबई सरस्वती भवनसे प्राप्त हुये प्रतीसे हमको पूर्ण साहाय्य हुआ. उत्तरार्धमें भी प्रारंभके दो पत्रे हैं तदनंतर तीसरे पत्रसे ११ वे पत्रतक १२ पत्र नहीं है. अतः उतनी टीका हम नहीं छपा सके. अन्तिम प्रशस्ति भी पूर्ण नहीं है, अतः प्रशस्ति हम पूर्ण प्रगट न कर सके. यह पुस्तक श्रीमंत रतनलाल नरसिंगसा राजळने भेज दी थी. मूलाराधनादर्पण की हस्तलिखित प्रति भेजकर हमपर जो उपकार उन्होने किये हैं उनके लिये आभार मानना हम आवश्यक कर्तव्य समझते हैं और मानते हैं. इस भगवची आराधना मेथका संशोधन मेने मेरी तुच्छ बुद्धिके अनुसार किया है. तथा विजयोदया टीकाका हिंदी भाषा अनुवाद किया है. मराठी भाषा मेरी मातृभाषा है. असः इस हिंदी अनुवाद, लिंग, विभक्ति वगैरहोंक

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