________________
आवासः
मृलाराधना
७२
विशेष---गाथामें जिदकरणो यह शब्द है. यहां करण शब्दके अनेक अर्थ है. रूपादिविपयको ग्रहण करनेवाले ज्ञान जिनसे उत्पन्न होते हैं वे करण हैं. अर्थात् करण शब्दका इंद्रिय ऐसा अर्थ होता है. इंद्रियोंसे रूपादिक पदाधीका ज्ञान उत्पन्न होता है. कार्य उत्पन्न करने काको जो अतिशय सहायक होता है उसको भी करण अर्थात् साधकतम कहते हैं, जैसे देवदत्त कुल्हाडीसे लकडी काटता है. कुल्हाडीके बिना लकढीका काटना देवदत्तसे असंभव है अर्थात् लकड़ी काटनेमें देवदत्तको कुल्हाडी अतिशय मदत करती है अतः वह करण साधकतम कहलावेगी. करण शब्दका कहां कहां सामान्यक्रिया ऐसा भी अर्थ माना है, यथा हुकृञ् करणे. प्रस्तुत प्रकरणमें करण शब्दका क्रिया ऐसा अर्थ इष्ट है. 'जित ' शब्दका अर्थ अपने तायेमें रखना, पूर्णहस्तगत करना ऐसा है, जैसेजितभार्यः स्वरशीकृतभार्यः अर्थात् जिसने पत्नीको अपने स्वाधीन रक्खा है एता भनुम्ब, प्रस्तुत प्रकरणमें 'जिदकरणो स्ववशीकृतक्रियः' अर्थात शस्त्रादिकोंको घुमाना, लक्ष्यभेद करना इत्यादि क्रियाओंमें निपुण उसमें न चुकनेवाला ऐसा समझना चाहिये. 'कम्मसमत्यो ' इस समस्त शब्दमें कम्म शब्दके अनेक अर्थ है जैसेमिथ्यादर्शन, अविरति, प्रमाद, कपायोंके द्वारा जो ज्ञानादिक गुणोंको प्रतिबद्ध करनेके सामथ्र्यसे युक्त किये जाते हैं उनको कर्म कहते हैं, अर्थात् ज्ञानावरणादिकोको कर्म कहते हैं. कर्ताकी होनेवाली क्रियाके द्वारा जो व्याप्त होता है उसको कर्मकारक कहते है. कर्मकी व्याकरण शास्त्रमे द्वितीया होती है. जैस सूत्र- कर्मणि द्वितीया' घट करोति देवदत्तः' इस वाक्यमें देवदत्त कीत्व क्रियाने घटको व्यापता है. अर्थात् घट कर्तत्वक्रियासे व्याप्य होता हैं, कर्म शब्दका क्रिया' ऐमा भी अर्थ है, यहां कर्म शब्द क्रियावाची समझना. जैसे 'किंकर्म करोपि' तू कोनसा कार्य करता है ? ' कम्मसमत्यो इसका अर्थ-छुट जाना, प्रहार करना, ठोकना इत्यादि कर्म शब्दका अभिप्राय यहां समझना चाहिये.
जो जिस कार्यको साधनको इन्छा रखता है वह उसक साधनभूत सामग्रीमें प्रथम प्रयत्न करता है. जैसे शत्रुको मारनंकी इच्छा करनेवाला मनुष्य मारनेकी माधन मत मात्र विद्या पढता है उसी तरह मुनि भी आराधनाओंका अभ्यास करके मरण कालमें रत्नत्रयकी प्राप्ति कर लेते है,
m