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लाराधना
आश्वासा
प्रतिज्ञा मरेलक्ष्यते । मरणं चात्रानुभूयमानायुःपुदगलगलनं मरणभेदस्मरणार्थमिवमार्याद्वयमषधार्य
आवीचितद्भवावध्यायतसशल्यगृध्रपृष्ठमृतीः । जिब्रासयुत्सृष्टबलाकासं क्लिश्यमरणानि ||१|| शिशुशिशुशिशुशिशुपंडितमृतीः सभक्तोज्झनेंगिनीमरणं ॥
मायोपामला हिताधिरमरणे च सप्तदश विद्यात् ॥ २॥ १ सत्र प्रतिक्षणमायुःक्षय आवीचिमरणं । समुद्राम्बुषु वीचीनामिव आयुःपुद्गलाणुषु रसानां प्रतिसमय मुयोड्य विलयनात् । २ भुष्यमानायुषश्चरमसमये मरणं तद्भवमरणं ३ यादशेन मरणेन पूर्व मृतस्तादृशेनैव मरणमवधिमरण । ४ देशवः सर्वतो वा प्रकृतिस्थित्यनुभागप्रेदेशलादृश्येन अबधीकृतेन विशेषितल्यान्। प्रकृतिस्थित्यनुभव प्रदेशैर्देशतः सर्वतो मान्यारशमरणमातभरणं । आदेः प्रथममरणस्पान्तो विनाशो यस्मिन्नुसरमरण इति इयुत्पत्तेः । ५ मायानिदानमिथ्यात्वलक्षणशल्यसमेतस्य मरणं सशस्यं मरणं। ६ इस्तिकलेयरादिषु प्रविश्य मरणं गूपृष्धमरणं ७ वाणनिरोधं कृत्वा मरण जिघ्रासमरणं । ८ वर्शनशानचारित्राणि त्यक्त्वा मरण व्युत्सृष्टमरण ९ पार्श्वस्थरूपेण मरणं बलाकामरणम् । १० दर्शनशानचारित्रेषु संक्लेशं कुत्या मरणं सायमरणं । शेषसप्तकस्य लभणानि म्वयमेवाचार्योऽये वक्ष्यति ।
हिन्दी अर्थ-श्रीजिनेश्वरोंने जिनागममें मरणोंके सतह प्रकार कहे हैं, उसमेंगे संग्रह करके मैं (शिवकोट्याचार्य) पांच मरणोंका स्वरूप कहता हूं।
विशेषार्थ-मरण, विगम, विनाश, विपरिणाम ये एकार्य वाचक अर्थात मरणके वाचक शब्द हैं. मरणके पूर्व में प्राणीका जीवन पर्याय होता है अनंतर मरण पर्याय होता है ऐसे दो पर्याय जीवमें होते हुए देखे जाते हैं. जीवन पर्यायकही स्थिति, अविनाश, अवस्थिति ऐसे नाम है. जिस पदार्थकी स्थिति होनी है वही पदार्थ नष्ट भी होता है. जिसकी स्थिति ही नहीं उसका नाश भी नहीं होता है, जैसे बंध्यासुतकी स्थिति नहीं है अतः उसका नाश भी नहीं है. स्थितिरहित वस्तु क्षणिकवादि बौद्धोनें मानी है. चे सर्वथा वस्तु क्षणिक मानते है. जीवन जन्म पूर्वक ही रहता है, जो चीज उत्पन्न हुई नहीं उसकी स्थिति भी नहीं रहती है. अतः नाश, उत्पत्ति और ध्रौव्य थे तान