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आश्वासः
दलाराधना
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हैं. ऐसे समान आत्माका जो स्वभाव उसको सामान्य अर्थात समता कहते हैं. 'समान' इस शब्दकी प्रवृत्ति जीवमें होनेका कारण समता है. अर्थात् जिसमें समता है उसको समान कहते हैं. जीवित मरण, लाभ अलाम, सुख दुःख, बंधु व शत्रु इनमें अर्थात् जीवित, लाभ, सुख, बंधु इनमें रागभाव करना और मरण, अलाभ, दुःख
और शत्रु इनमें देष-अग्रीति रखना यह असमानता है. इस असमानताका त्याग करना ही समता है. जीवित मरण इत्यादिकोंका यथार्थ स्वरूप समझनाही समता है. परंतु उसमें प्रीति व अप्रीति करना यह समानता नहीं है. इंद्रियादि प्राणाको धारण करना यह जीवित शब्दका अर्थ है. परंतु इंद्रियादिप्राणोंका अस्तित्त्व आयुकर्मके आधीन है. वह आयु जब तक रहेगी तब तक जीवित टिक सकता है, वह जीवित मेरे आधीन नहीं है, क्योंकि जीवितेच्छा होकर भी प्राण चले जाते हैं. सर्व जगतके प्राणी हमेशा प्राण रहे ऐसी इच्छा करते हैं परंतु आयुका वियोग होनेसे प्राणों का निर्गमन होता ही है उसको वे रोकने में असमर्थ है.
२ मरा-इंद्रियादि प्राणोंसे आरमाका अलग हो जाना मरण है. अर्थात् प्राणोंका त्याग होना मरण है. मुझ प्राणत्यागे' ऐसा म धातुका अर्थ है. प्राणोंका त्याग अर्थात् आरमासे प्राणोंका वियोग होना, आत्मासे उनका अलग होना. आयुकर्म संपूर्ण गल जानेसे प्राणोंका वियोग होता है. विष, शस्त्र, बाण इत्यादि प्राणहारक पदार्थोका संयोग होनेसे द्रव्येद्रियोंका नाश होता है. ज्ञानोपयोग दर्शनोपयोग ये भाव प्राण हैं. विष शस्त्रादिकाका संयोग होनेसे शानदर्शनादि आवरण कर्मका उदय होता है. जब इन कर्मोंका उदय होता है तब लन्धिका विनाश हो जाता है. बीर्यान्तराय कर्मका उदय होनेसे कायबल, बचनचल, और मनोबल इनका नाश होता है. मुख बंद करनेसे, नाक बंद करनेसे तथा श्लेष्मादिकोंसे उछासनिश्वास प्राण नष्ट होने हैं.
लाभांतराय कर्मका क्षयोपशम होनेमे इष्ट पदार्थकी प्राप्ति होती है. तथा लाभानरायका उदय होनेये अलाभ होता है. प्रीतिरूप परिणामको सुख कहते हैं यह प्रीति परिणाम जीवमें साता वेदनीय कर्मके उदयसे होता है. इष्ट पदार्थ साथ होनेसे मनुष्यको आनंद होता है. अंतरंग कारण साता बदनीयका उदय और बहिरंग कारण इष्ट वस्तुकी प्राप्ति इन दोनोंसे जीवमें प्रीति उत्पन्न होती है..
पीडा रूप परिणामको दु:ख कहते हैं. वह असाता वेदनीय कर्मके उदयसे जीवमें प्रगट होता है, संसारमें भ्रमण करनेवाले जीयके कोई नियत बांधव नहीं है, जिसके उपर यह जीव उपकार करता है वह