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काराधना
पायाप्त:
८२.
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पदार्थसे हो जाते हैं तो प्रथम समयमें ही उससे सब कार्य हो जानेसे द्वितीयादि समयमें वह अकिंचित्कर होगा. परंतु पदार्थ द्वितीयादि क्षणमें भी कार्य करता हुवा दृष्टिगोचर होता है अतः वह सर्वथा नित्य है ऐसा मानना अनुचित है. नित्यवस्तुमें कार्य करनेका स्वभाव नहीं दीखता है वह अनित्यमें है अतः वस्तु क्षणिक ही है यह श्रद्धान करना भी मिथ्यात्व ही है, ऐसे मिथ्यात्वका समताधारक मुनि पराजय करते हैं, सर्वथा निन्य व अनित्य पदार्थमें कार्य करने का स्वभाव नहीं है परंतु कचित् नित्यानित्य पदार्थ में कार्य करनेका स्वभाव अवश्य होनेसे वह कार्य करता हुवा दीखता है. यदि क्षणिकता ही वस्तुका स्वरूप है तो वह कार्य नहीं करेगी क्योंकि उसका एक ही रूप रहेगा. उसमें पूर्वस्वरूप नष्ट होकर दुसरा स्वरूप नहीं आता है. इसी तरह नित्यमें भी समझना चाहिये.
संशय मिथ्यात्वका स्वरूप-वस्तुस्वरूपका जिसमें निश्चयही नहीं होता है उसको संशय मिथ्यात्व कहते हैं अर्थात् वस्तु नित्य है ? अथवा अनित्य है ? वा नित्यानित्यात्मक है ? ऐसा अनिश्चय रहता है. ऐसे मिथ्यात्यका पराभव मुनिराज वस्तु नित्यानित्यात्मक है ऐसा निश्चय करके करते हैं. जगत्के समस्त पदार्थ कथंचित्रित्यानित्यात्मक हैं. द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षासे वस्तु अपने स्वरूपको नहीं छोडती है. जीवका चैतन्य जीवको कभी छोडता नहीं है. वह हमेशा उसमें रहताही है अतः जीवको नित्य कह सकते हैं, मनुष्यत्व देवत्वादि पर्याय सदा स्थिर रहते नहीं, मनुष्यत्व नष्ट होकर जीव देव, नारकी, तिर्यच ऐसी पर्याय धारण करता है. अतः पर्यायकी अपेक्षासे वह अनित्य भी है. अतः उसको नित्यानित्य समझना योग्य है. जीवके समान अजीच-पुद्गल, धर्म, अधर्म आकाश, काल ये पदार्थ मी नित्यानित्यात्मक हैं,
विपर्यय मिथ्यात्वका स्वरूप-हिंसा दुर्गतिमें भ्रमण कराती है. तथापि वह स्वर्गादि मुखके लिये कारण होती है ऐसा निश्चय ज्ञान होना यह विपर्यय मिथ्यात्व है, अहिंसा दुःख देने में कारण है ऐसा समझना विपरीत मिथ्यात्व है. ऐसे मिथ्यात्वका पराजय मुनि करते हैं. हिंसा स्वर्गप्राप्ति में कारण होती है अतः हिंसा कारण है और स्वर्गप्राप्ति होना उसका कार्य है ऐसा कहना योग्य नहीं है. जिसको लोक धर्म हेतुसे मारते है उसको अत्यंत दुःख होता है. तिलमात्र भी उस प्राणीमें शांतता उस समय रहती नहीं है. अतः उस प्राणीको तथा मारनवालको स्वर्ग लाभ होना नितांत असंभव है, दयाक्षमादि गुणही स्वर्गादि सुखके लिये कारण होते हैं, हिंसाही यदि स्वर्गके लिये
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