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लाराधना
STATISTORE
स्थित, पतत्साधनाय सूत्रद्वयमुत्तरं यत्र हि सूत्रकारा तान्नबंधन पदात । आत्मनः प्रतिज्ञातस्य तत्र व्याख्यातुरखसरा निबंधनाण्याने यत्र तु स एय बदति तत्र सदेव व्याख्यातुमवगम्तव्यमिति व्याख्यानमः शाकोषु । न वेदमनेन प्रतिविधाममभूनिरम् सीधी साध्यमिणमकादत्वयसि णातूण होवि परिहारो, इत्या निरूपयिष्यति यतः सूत्रकारः । किं च उत्सरसूत्रानुष्ठानमस्यां व्याख्यायर्या चारित्राराधनामुखेनैकैवाराधनेति प्रतिपिपादयिषितं । तब सेप्रति विधानं प्रतिपादयितुं कोऽवसर उत्तर गाथायाः । इतराराधमान्तावकारिण्याचारिपाराधनाया निरूपणायां चारित्रस्वरूपास्यानाय उसरगाथायातेति कथममयसर इति चेत् यद्येवं दर्शनाराधनायां कानारामनामन्तव्य प्रवर्तमानायां दर्शनखाए कि नोच्यते सूत्रकारेण ? स्वेच्छेति चेन न्यायानुगामियां शास्त्रकाराणां न्यायादपेतेच्छा मयुक्ता।
इदनी परमसंपादेकधैवाराधना स्यादिति दर्शयति
मूलारा-चारिताराहणाए-परन्ति यान्ति तेन हिसप्राप्तिमदितनिवारण चेति, चर्यते सेव्यते सद्भिस्तदिति या चारित्रं सामायिकादिकं । तत्परिणती सत्यां आराहिदं निष्पादित । सञ्चं ज्ञानं दर्शनं तपश्च । सेसस्स ज्ञानादित्रयस्य भन्जा भाज्या विकल्पाः। तद्यथा-असंयतसम्यग्दृष्टिनिदर्शनयोराराधको भवति नेतरयोः । भिध्यादृष्टिरनशनादितपस्युचतोऽपि न चारित्रमाराधयति । कश्चित्पुनः ज्ञानादीनि चारित्रमपि संपादयति । नतो न ज्ञानादिमुखे कत्यमुक्तमाराथानाया इति भावः । पतक श्राधिकवीतरागसम्यक्त्वाकेवलज्ञानाचान्यव बोध्यम् ॥
द्वाज
हिंदी अर्थ-चारित्रकी आराधना करनेसे सर्व आराधनाओंकी आराधना होती है. परंतु दर्शनादि आराधनासे चारित्रकी आराधना होगी या नहीं भी होगी.
विशेषार्थ-एक, दोन, तीन, संख्यात, असंख्यात अनंत रूपसे श्री जिनेश्वरके मतमें वस्तुका वर्णन होता है. अतः वस्तुका अतिशय संक्षेप व विस्तार पूर्वक विवेचन जैन ग्रंथमें पाया जाता है. जिससे जीव हितको प्राप्त होते हैं अथवा अहितका निवारण करते हैं उसको आचार्य चारित्र कहते हैं. अथवा सज्जन जिसका आचरण करते हैं, सेवन करते हैं उसको चारित्र कहते हैं. इस चारित्रके सामायिक वगैरे भेद हैं. ऐसे चारित्रकी आराधनामें जब आत्मा तत्पर होता है तब इसमें तन्मयता होनेसे शान, दर्शन, तप ऐसी सर्व अर्थात् तीनों आराधनायें आराधी जाती हैं. अर्थात् इन तीनाकी भी प्राप्ति होती है. यहां प्रकार व संपूर्णता ऐसे दो अर्थोमें सर्व शब्दका प्रयोग किया है. जैसे 'सर्व मोदनं भुक्त' अर्थात "बीही वगैरे जितने शालीके भेद है उतने सर्व मेदसहित शालीका भात खाता है." इस