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लाराधना
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आधासः
किसी मनुष्यको अमिलानके लिये आज्ञा की तो वह सरायमें विना कहे भी अग्नि लाता है. सरावमें अग्नि लावो ऐसा कहनेकी आवश्यकता नहीं रहती है. आधारके बिना अग्नि नहीं लासकते अतः पात्र लेकर अग्नि लावो ऐसा नहीं कहने पर भी पात्रका बोध हो ही जाता है। परंतु सम्यग्दर्शनकी आराधना करने वालेको ज्ञानकी भी आराधना कैसे होगी यह समझमें नहीं आता है. इस शंकाका उत्तर यह है कि, सम्यग्दर्शन और ज्ञान इन दोनों में अविनाभाव संबंध है अर्थात् सम्यग्दर्शनकी जो व्यक्ति आराधना केरंगी बह जरूर ज्ञानाराधक होता ही है.
यहां कोई आचार्य इस गाथाका संबंध ऐसा जुड़ानेका प्रयत्न करते है. यदि दो प्रकारक, आराधना कहते हो तो ' चतुर्विधाराधनाफलं प्राप्ताः सिद्धाः ' ' चार प्रकारकी आराधनाओंका फल सिद्धोंको प्राप्त हुवा है । यह प्रतिज्ञा नष्ट होती है. क्योंकि आपने दर्शनाराधना और चारित्राराधना ऐसी दोही आराधनायें कही हैं, और प्रथम गाथामें सिद्ध परमेष्टीको चार आराधनाओंका फल प्राप्त हुआ ऐसी आपने प्रतिज्ञा की है. वह चरितार्थ नहीं होती यह दोष अर्थात प्रतिज्ञाहानि नामका दोष यहां आता है. इसका उत्तर-आराधनाके दो भेद माननेसे भी दोष नहीं है. क्योंकि हमने दर्शनाराधना तथा चारित्राराधनामें कमसे मानाराधना और तप आराधनाका संग्रह किया है. अतः हमारी प्रतिमा नष्ट नहीं होती है. प्रतिमा शब्दसे आपका क्या अभिमत है ? यदि साध्यका वर्णन करना यह प्रतिमा है ऐसा कहोगे तो यह योग्य नहीं है. चार प्रकारके आराधनाओंका फल सिद्ध परमेष्ठिगेको प्राप्त हुआ है यह रात यषं साध्यरूप नहीं है, क्योंकि, जो असिषद वस्तु साध्य मानी जाती है, सिद्धोंको पार आराधनाओंका फल प्राप्त हुवा है यही पात फिरसे आचार्यने यहां कही है. यदि चार आराधनाओंका फल सिद्धोंको प्राप्त हो गया है ऐसा मानना यह प्रतिक्षा है ऐसा कहोगे तो यह क्या युक्ति संगत नहीं है। चार आराधनाओंका फल उनको प्राप्त हुवा है यह मान्य करने योग्य है इसको नाकबूल करना कैसा योग्य होगा?
पूर्व गाथामें आराधनाके चार भेद कहे हैं अब यहां उसके दो भेद आप कहते हैं यह पूर्वापर विरुद्ध नामका दोष दुबा, इसका उत्तर यह है कि, संक्षपसे आराधनाके दो भेद हैं व विस्तृत वर्णनकी अपेक्षासे चार भेद होते हैं अतः इसमें कोनसा विरोध है ? अतः यह गाथा विरोधपरिहार करनेके लिए आचार्थने रची है ऐसा समझो.
सम्यग्दर्शनकी आराधना करनेसे सम्यानका आराधन अवश्य होता है. जिस पुरुषको जिस विषयको
नाओंका फल सिद्धोंको प्राराधनाओंका फल प्रार
ह क्या पाक्ति संगत