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आश्वासः
मूलाराधना
तप है. देहमसे ममत्व-स्नेह देर करना कायोत्सर्ग तप है.अनशादिकको तप कहते हैं. यह तप दोषोंका नाश करनके लिए गुरूने दिया हुवा पायश्चित्त स्वरूप है. असंयमसे तिरस्कार उत्पन्न होवे इस लिये दीक्षाके दिन कम करना छेद तप है. पुनः दीक्षा देना उसको मूल तप कहते है, ये सब प्रायश्चित्त तपके भेद हैं. अशुभ क्रियायें ज्ञान दर्शन चारित्र तप इनके अतीचार है. इनको हटाना विनय तप हैं, चारित्रके कारणाको सम्मति देना इसको वैयावृत्य कहते है. अर्थात् जिन कारणोंसे चारित्रकी वृद्धि होगी ऐसे कारणोंसे मुनीश्वराकी सेवा करना. अर्थात् संयमोपकरण पिंछी, कमंडलु, ज्ञानोपकरण शास, आहार, औषध वगैरह वस्तुओसे उपकार करना यह सब वैयावृत्य है. स्वाध्याय
और ध्यान भी चारित्रकी वृद्धि करनेवाले तप है, अंग पूर्वादि शास्त्रोंको पढना स्वाध्याय तप है. शुभ विषयमें एकाग्र चित्त करना ध्यान है. अविगति, प्रमाद, कषायोंका त्याग स्वाध्याय करनेसे तथा ध्यान करनेसे होता है इस वास्ते वे भी चारित्ररूप है. अतः सब तर्पोका चारित्राराधनामें अन्तर्भाव होता है अतः दर्शनाराधना व चारित्राराधना ऐसे आराधनाके दो भेद माने हैं.
अशनादिकोंका- आहारादिकोंका यद्यपि त्याग किया तो भी अपिरतिका त्याग नहीं होता है क्योंकि, आहारादिकोंका त्याग करनेवाले भी असंयत दीख पडते हैं. ऐसा आशय मनमें धारण कर आचार्य ऐसा कहते हैं... जो तपकी आराधना करते हैं वे चारित्राराधना करते हैं अश्या नहीं. अर्थात् तप करनेवाला पापोंसे विरक्त होकर
चारित्र धारण करनेवाला होता है अथवा नहीं भी. परंतु चारित्र धारण करनेवाला नियममे विरतिपूर्वक तप करता | है अतः चारित्रमें तपका अन्तर्भाव होता है, परंतु तपमें उद्युक्त हुवा पुरुष असंयमका परिहार करेगा वा न करेगा.
इस गाथापर दुसरे विद्वान् आपना आगे दिखाया दुवा आभिप्राय प्रगट करते हैं
“चारित्राराधनामें तप आराधनाकी सिद्धि अवश्य होती है ऐसा कहा गया है. वह कैसा ? ऐसा प्रश्न होनेपर 'संयममारा_तण ऐसा सूत्रोपोद्घात किया है " ऐसा जो अन्य विद्वान् कहते है. वह युक्ति संगत नहीं दीग्यता है. क्योंकि आचार्थने ' चारित्राराधनामें तप आराधनाकी सिद्धि होती है। ऐसा वाक्य सूत्र में कहा नहीं है. तो आप उन्होंने कहा है ऐसा क्यों कहते हैं ? यदि त्रिदिया य हवे चरित्तम्मि' इस वचनके द्वारा उन्होंने कहा है ऐसा कहोगे तो यह कहना अशब्दार्थ है, अर्थात् 'चारित्राराधनमें तप आराधनाकी सिद्धि होती है ऐसे शब्द गाथामें नहीं हैं. शब्दोंके द्वारा जो अनुभव आवेगा उसकोही' कहा गया है। ऐसा कहना चाहिये. .