Book Title: Mularadhna
Author(s): Shivkoti Acharya, 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 11
________________ लाराधना S प्रस्तावना यह टीका विजयोदया टीकाके नीचे दी है. अर्थात इस ग्रन्थ में प्रथमतः शिवोहाना की शार अमितगति आचार्यका समानार्थक श्लोक, तदनंतर विजयोदया टीका और मूलाराधनावर्पण टीका, इन के अनंतर विजयोदया टीकाका हिंदी अनुवाद ऐसा क्रम है. भगवसी आराधनाका हिंदी अनुवाद भी. पं. सदासुखजी का भी प्रसिद्ध हुआ है. इसमें श्री विजयोदया टोकाका उन्होने कितनेक स्थलोंमें भाभय लिया है। कितनेक स्थलों में इस टीका के विषय में संवेयुक्त है. उनको यह टीका श्वेताम्बराचार्य कत है ऐसा भ्रम हुआ है. परंतु वह कोरा धम ही है. उलटा इस टीका श्वेताम्बरोंके आपा. रांगावि पथों के पक्षपात्रादि प्रहण वगैरेह विषयों का जोरदार खरन है. पाठक टीका तथा उसका अनुवाद पढ़कर संशयनिवृत्त अवश्य होंगे. आणतक सिसी भी जिनवाणीभक्त ने भगवती आराधना की संस्कृत टीकायें प्रकाशित नहीं की थी. यह न्यूनता जानकर जिनवाणीभूषण श्रीमान् धर्मवीर रावजी सखाराम दोधीने विपुल धनध्यय कर यह सटीक अन्य प्रकाशित किया है. इसके लिये वे अतीय यन्यवाद के पात्र हैं. श्री. धर्मवीर रावसाहेब का जैन ग्रंथका प्रकाशनकार्य आजकलका नहीं है. करीब तीस वर्षसे उन्होंने यह प्रकाशन कार्य सतत चालु रक्खा है.स्याद्वादभूषण स्व. पं. कल्लाप्पा भरमापा निटषेने प्रथमतः शालिवाहन शक १८३० में महापुराणका अनुवाद महाराष्ट्र भाषामें प्रसि किया. उन्होंने प्रस्तावनामें श्री रावजी सखाराम दोशी इन्होंने हमारे इस प्रकाशनके कार्यमें दो तीन वर्षसे साहाय्य दिया है इस लिये वे धन्यवादके पात्र है ऐसा उलेख किया है.. परमपूज्य श्री शांतिसागर आचार्यजीने इस महान ग्रंथको प्रकाशित करने के लिये श्री. धर्मवीर रावसाहेबको प्रेरणा की थी, महाराजकी आज्ञा गुरुभक्तशिरोमणि रावसाहेबने मस्तकपर धारण कर तथा दो वर्ष पूर्व श्री. क्षुहक विमलसागरजी के सान्निध्य में शोलापुरमें विजयोदया टीकाका हमने चहांकी संपूर्ण दि. जैन जनता के साथ स्वाध्याय किया था. श्री. क्षु, विमल सागर महाराजकी भी प्रेरणासे तथा खुद उनकी अभिरुचीसे भी यह ग्रंथ उन्होने प्रकाशित किया है. जैनधर्मकी प्रभावना तथा उसका सत्यस्वरूप जैन ग्रंथके प्रकाशनसे प्रगट होता है ऐसा प्रशंसनीय विचार इनके हृदयमें सदैव विराजमान है. इस विचार की प्रेरणा सतत होनेसे आजतक सैकहो मंत्रों का सेठ साहेबने प्रकाशन किया है. PALI ९

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