Book Title: Marathi - Tattvasara
Author(s): Changdev Vateshwar
Publisher: Prachya Granth Sangrahalay

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Page 26
________________ [३] वैराग्य तें ऐसे, जे देह अहंतोस रुसे, इछा क्रिया राहे आपैसें, योगसिद्धि ॥ ५९० ॥ ___ जरि अष्टांग योगाभ्यासु, तरि स्वभावें होय स्वयंप्रकाशु, देखिजे परमहंसु, परमात्मा ॥ ११ ॥ शरीरसिद्धांत गोप्यगहर, ते केंवि करूं गोचर, परि सकळे निःशब्दाधार, कथन करीन ॥ ९२ ॥ जैसा गुरुद्रोहु न पड़े, आणि सिद्धिद्वेषु न घडे, तैसा बोलों उजेडे, शरीरनाथु ॥ ९३ ॥ सोपाने बोलिजैल, शास्त्राज्ञा कथिजैल, अध्यात्मि किजैल, रूप चांग ॥ ९४ ॥ हे स्थूल सूक्ष्म भक्ति, बोलिलि ज्ञान वैराग्यसंमति । ते परियसा निर्गुणभक्ति, चांगा म्हणे ॥ ९५ ॥ निर्गुणभक्ति. जे वातिवरि गिवसिता, न दिसे संसारवार्ता, ते हि निर्गुण भक्ति सेवितां, प्रपंचु तुटे ॥ ९६ ॥ जे पापापुण्यापूर्वि, जन्म मरणातें हारवि, महा बोधु चेववि, आत्मस्वरूपें ॥९७॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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