Book Title: Marathi - Tattvasara
Author(s): Changdev Vateshwar
Publisher: Prachya Granth Sangrahalay

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Page 74
________________ [४९] सर्व तीर्थ यज्ञ फळ, पाविजे अवलिळ, हे कथा परिसतु निर्मळ, श्रोते वक्ते ॥ २४ ॥ ___ वटेश्वराचा सुतु, चांगा म्हणे अवधुतु, सिद्धसंकते मातु प्रगट केली ॥ २५ ॥ ___ हा ग्रंथु पावला समाप्ति, तै शााळवाहनु शकु किती, कवण संवत्सरु मासु तिथी, वारु कवणु ॥२६॥ ___ कवण क्षेत्र स्थान देवता, कवण गंगा तीर्था, कैसी महिमा कवणु सेवित, पृथज्ञ सांघों ॥ २७ ॥ शके चौतिसें बारा, परिधावी संवत्सरा, मार्गशिर शुद्ध तीज रविवार, नामसंख्य ॥ २८ ॥ हरिश्चंद्र नान पर्वतु, तेथ महादेओ भक्तु, सुर सिद्धगणी विख्यातु, सेविजे जो ॥ २९ ॥ ___ हरिश्चंद्र देवता, मंगळ गंगा सरितः, सर्व तीर्थ पुरविता, सप्तस्थान ॥ ३० ॥ ब्रह्मस्थळें ब्रह्म न संडितु, चंचल वृक्षु अनंतु. लिंगिं जगन्नाथु, महादेओ ॥ ३१ । ऐसा सर्वांचा समाओ, कळी संसारु दुःखाचा प्रवाहो, ता देओ मोक्षाचा उत्साओ, शनैः शनैः ॥ ३२ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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