Book Title: Marathi - Tattvasara
Author(s): Changdev Vateshwar
Publisher: Prachya Granth Sangrahalay

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Page 30
________________ [७] जे रविसंख्या सहस्र, महा तेज प्रकाशु, तेवि स्वयं तंज बहुवसु, आधारिणी ॥ २३ ॥ जे कुळा अकुळा विचारु, पक्ष द्वय निर्धारु, षट् चक्रां आधारु, नाडिया ॥ २४ ॥ दशवायु गुणत्रया, रवि शशि बीज द्वया, पंचभूतिक पीठत्रया, शरीर संख्या ॥ २५ ॥ ___ हे सर्व कुंडलिणिचि सृष्टि, उत्पत्ति संहार स्थिति, आतां गुरु विचारें बोलति, रूप कैसें ॥ २६ ॥ रूप. आतां रूप सांचैन आइका, जे दशविध परि एकि अनेका, पद पिंड विभागका, परि एकांचि जे ॥ २७ ॥ ते नाद बिंदु कळा ज्योति, एवंविध रूपाचि स्थिति, तियेते जीउ म्हणिपति, गुणात्मकु पैं ॥ २८ ॥ ____ मन बुद्धि चित्त अहंकारु, हा चतुष्टय आकारु, पंचभूतिकिं अनेक विचारु, तोचि जाला ॥ २९ ॥ आतां पंचभूतिकोत्पत्ति, यांचि सांघेन वित्पत्ति, एक एका प्रति, जन्मजाले ॥ ३० ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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