Book Title: Marathi - Tattvasara
Author(s): Changdev Vateshwar
Publisher: Prachya Granth Sangrahalay
View full book text
________________
[२४] जे स्वमेव एकचि, तयासि तोंच, आपणयां आपणचि, होउनि असे ॥ ६५ ॥ ___जं अतीतासि अतीत सर्वी सर्व भरीत, ते हे तुंचि अखंडित, जाण पुत्रा ॥ ६६ ॥
आतां बहुत काइ बोलावें, अवधे तुंचि जाणावें, एवं गुणी आपुलें बरवें, रूप जाण ॥ ६७ ॥
एसें वैर।ग्य उपजलें, तुज तुचि प्रकाशलें, तरि संसार हारपलें, स्वरूपिंचि ॥ ६८ ॥
एवं उपजले ज्ञान, ते तुचि तुं आपण, तरि सुष्ट गति गहन, पातलासि ॥ ६९ ॥
ऐसा आत्मबोधे बोधला, सुखशयनी सूतला, असे गगनी निमाला, आपुलांचि ॥ ७० ॥
अवकाश शून्यातातु, स्वयं शन्नी रतु, मन शेषि तृप्तु, होउनियां ॥ ७१ ॥
कर्मलीला. सहज शून्य भरितु, असें पुत्रा संततु, भुवनत्रयीं विचरतु, स्वयं लीला ॥ ७२ ॥
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com

Page Navigation
1 ... 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112