Book Title: Marathi - Tattvasara
Author(s): Changdev Vateshwar
Publisher: Prachya Granth Sangrahalay

View full book text
Previous | Next

Page 50
________________ [२७] अगम्य घडलें, अवध्यहि वधलें, जरि मन प्रवर्तलें, ऐसेयासि ॥ ९ ॥ तहिं तो न बंधिजे, पुण्यपापें न घेपिजे, लिपिजे ना भुंजिजे, मनमुक्त जो ॥ ११ ॥ ऐसें केवढे अगाध, आत्मतत्व महाबोध, पुण्यपाप फळउछेद, अविनाशु जो ॥ ९२ ॥ ऐसा गुरु तत्वोपदेशु केला, तव शिष्यु संतोषला, आणि कृताकृत्य जाला, परिपूर्ण तो ॥ ९३ ॥ अतःकरणिं सुटला, जिवभावां मुंकला, स्वयं बोधे बोधला. गुह्य सुखें ॥ ९४ ॥ ___ ध्येय ध्याता विसरला, अखंडितु जाला, समदृष्टी मुक्तु मिसळला, तेया परी ॥ ५५ ॥ किंबहुना शिष्यु उपदेसिला, गुरुरहस्य पातला, परि आक्षेपु केला, तो आइका ॥ ९६ ॥ आक्षेप. तंव शिष्यु म्हणे जी ताता, मज कृपा केली आतां, तुमच्येनि प्रसादें तत्वता, कृतार्थ जालां ॥ ९७ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112