Book Title: Marathi - Tattvasara
Author(s): Changdev Vateshwar
Publisher: Prachya Granth Sangrahalay

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Page 67
________________ [४४ ईश्वरादिक कोपति, ते श्रीगुरूनि राखिजति, आणि श्रीगुरु कोपति, तरि कवणु राखे ॥ ५७ ॥ ___ जो गुरूचा मनी नुरेचि, तो असतां बोधु न पवेचि, कर्मिरूप बसेचि, अर्धकूपीं ॥ ५८ ॥ ___ गुरु येणे आकारें, उमासहितु हरिहरें, वसिजे चराचरें, श्रीगुरू मुर्ति ॥ ५९॥ ब्रम्हाकोटि मध्यन्तु, जितुके काहिं वर्तत, तें श्रीगुरु चरणीं वसत, नितिवंत पैं ॥ ६ ॥ ___ गुरुचरण सेवौनि. आगि हात लावौनि, जिये जळें योत स्पौंनि, तिये तिर्थरूपें ॥ ६१ ॥ गूरु तिर्थरूप जाणिजे, अवज्ञाभेदे न देखिजे, द्रोहो पडो नेंदिजे, दोषदृष्टि ॥ ६२ ॥ __ हे सिद्ध धर्म साधिति, जे ईश्वर बोलिजति, ते आम्हि तुजप्रति, सांघितले ॥ ६३ ॥ प्रश्न. तव शिष्यु म्हणे ताता, गुरु सेविजति आत्महिता, परि प्रमादवशे अवचिता, द्रोहो घडे ॥ ६४ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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