Book Title: Marathi - Tattvasara
Author(s): Changdev Vateshwar
Publisher: Prachya Granth Sangrahalay
View full book text
________________
[४] ऐसा ध्वनि आइकिला, तंव शिष्यु मुखिं प्रवेशला, जैसा प्रकाशु मीनला, प्रकाशासि ॥ १५ ॥
कां समुद्रिं समुद्रु मिसळला, कां आकाशिं आकाशालयो जाला, हरिहरां जाला, ऐक्यवादु ॥ १६ ॥ __ तैसें उभयतां मीनले, ब्रह्मतीज येकवाटले, गुरु राशि वाढीनले, असंख्यात ॥ १७ ॥
गुरुनु शिष्याचा घोंटु भरूनु, आपणयांहि मिठी देउनु, प्रतीतिमागु सांडौनु, राहिला पैं ॥ १८ ॥
आतां मागां पुढां एकुचि, घनदाट गुरुचि, तया सुखा न येचि, रूप करूं॥ १९ ॥
गुरु शिष्य येक जाले, तें जालेपणहि गेले, गेले. पण राहिले, वटेश्वरिं ॥ २० ॥ ___ ऐसा शिष्यु गुरुभक्ति बोधला, वेदगुह्य पातला, कविता धर्मे संपला, प्रबंधु हा ॥ २१ ॥ ___ हे चतुर्विध भक्ति, हा पांचवां पुरुषार्थ जाणती, ते कष्टिं समाप्ति, पावविली ॥ २२ ॥
महाी बोलिलां आरज, बाळबोधपणे विरज, गुरुवटेश्वरिं वाइली पुजा, चांगा म्हणे ॥ २३ ॥
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com

Page Navigation
1 ... 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112