Book Title: Marathi - Tattvasara
Author(s): Changdev Vateshwar
Publisher: Prachya Granth Sangrahalay

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Page 49
________________ [२६] पापपुण्यलय. म्हणौनु आत्मबोधां पाहालें, तेयां पापपुण्य आंधारें सरले, शुभाशुभ गेले, नाशौनियां ॥ ८२ ॥ ____ ज्ञानियांच्या दृष्टी, पडलें भलें तैसेंहि कर्म नुठी, तोकरूपां दोषसृष्टी, परि बाधिजे ना ॥ ८३ ॥ अथवा अभक्ष भाक्षलें, अपेया पान जाल, अहं कतै केले, तेया बाधेना ॥ ८४ ॥ __येहविं ब्रह्माहमस्मि बोधु, जया जाला निशुद्ध, तो त्या पापपुण्य सन्मंधु, कदाचि नाहीं ॥ ८५ ॥ जन्हि महायज्ञ केले, कां माहापाप घडलें, केलें कर्म मनिहुनि सुनिटले, तरि कवण भोगी ॥ ८६ ॥ ___ मन पाप पुण्य कर, उन्मनी भोगे जरी, पाप पुण्य तरी, बाधिजे ना ॥ ८७ ॥ __जैसा निरंजनी जळतु, सर्व तृणबीज जाळितु, तो अग्नि का भोगितु, जळिनल्यातें ॥ ८८ ॥ तैसा अग्नीसादृश्य मुक्तु, जो तत्वबोधरतु, विधि. निषेधरहितु, बाधिजे ना ॥ ८९ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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