Book Title: Marathi - Tattvasara
Author(s): Changdev Vateshwar
Publisher: Prachya Granth Sangrahalay
View full book text
________________
[१२]
निर्वाण. आतां वटेश्वरु होउनु निगुतें, सांधैन मिं वटेश्वरातें, मना करविं गिळवीन मागुतें, संसारासि ॥ ६५ ॥ विचि कैसें केलें,
हें नोबले, पाहिलें,
जाण नेण ॥ ६६ ॥
जें सोनें घडौनि, अळंकारिं होइजे आनानी, तैसें आत्मा वांचौनि, बोलों नेणें ॥ ६७ ॥
आतां असो हैं किति, उठउं संसाराची पांति, येहविं संसार विस्मृति, आपुला नव्हे ॥ ६८ ॥
जैसे निद्रेच्येनि प्रसादें, भोगीजती स्वप्नींची प्रमादें, तेविं अज्ञानाचेनि मदें, संसारु हा ॥ ६९ ॥
येहविं आत्म प्रबोध दृष्टी, के मन के शृष्टि, हे मनोमय उठीं मना पासौनि ॥ ७० ॥
आतां मनाचें कसण मोडिजैल, मन हा दोषु फेडिजैल, महाटिया बोलिजेल, सिद्धयोगु ॥ ७१ ॥ सिद्धयोग.
मन जिये ठायिं लाविजैल, तो तोचि बंधु पडैल, म्हणौनि निराशी किजल, तेणेंसिंचि ॥ ७२ ॥
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com

Page Navigation
1 ... 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112