Book Title: Marathi - Tattvasara
Author(s): Changdev Vateshwar
Publisher: Prachya Granth Sangrahalay
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[११) प्रथम वज्रासनी स्थीरुभूता, मूळद्वारिं बंधु निरुता, निगतु पवनु मागुता, भरीतु कीजे ॥ ५६ ॥
अधै अडिजें, ऊर्धे बंधु दाजे, मध्य अंकुचिजे, उच्छाल शक्ती ॥ ५६ ॥
गुरुवचनवर्मभेदें, शक्ति सूतली प्रबोधे, अधो मुख ऊर्धे, कमळ होए ॥ ५८ ॥ ___ पवनघायें हाली, शक्ति पुष्टि उकलली, ऊर्ध पंथें निघाली, ब्रह्मरंध्रा ॥ ५९॥
पवन भारें चालती, ऊर्धक, पेलती, आविंस म्हणौनि ग्रासिती, व्याधि रोगातें ॥६॥
पवनप्रबोधे मातली, जीव भावा मुंकली, तवं सत्राविं श्रवली, शक्ति मुखिं ॥ ६१ ॥ ___ मन पवन संधानें, शक्ति उसळली गगर्ने, भेदली स्थाने, षट्चक्रांची ॥ ६२ ।।
ग्रंथित्रय छेदुनि, षट्चक्रे भेदुनि, त्रिकुटिं योगु संपौनि, निर्गुणोंसें ॥ ६३ ॥
जे जाणतां जाणणें सरे, जेणें मनांचे मनत्व मुरे, तें सांघेन विचारें, चांगा म्हणे ॥ ६४ ॥
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