Book Title: Marathi - Tattvasara
Author(s): Changdev Vateshwar
Publisher: Prachya Granth Sangrahalay
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[ ९ ]
जें अक्षय अविनाश, सारासार सर्वस्व, ब्रह्मादिकां उपास्य, कैवल्य जें ॥ २३ ॥
जें
अच्युत अनुगत, सदाशिव साक्षात, सानंद मूर्त,
अनामय || २४ ॥
जें युगांत शेष, घनाघन एक, अनुपम्य सुख, 'सागर जें ॥ २५ ॥
जें निरंतर उदीत, बहुतांसि बहुत,
सर्वज्ञ शांत,
मंगळ जें ॥ २६ ॥
जें त्रिपदा गायत्री सार, उकाराक्षर, वेद वेथ गहर, पावन जें ॥ २७ ॥
जेथ सृष्टि होए जाए, महासुख विसंवलें राहे, ते तुं प्रत्यक्ष पाहे, परीस पुत्रा ॥ २८ ॥
हैं अचळ मूळ तुंचि, जें आदि अंतिं येकचि, द्वैताद्वैत आपणचि येथ भेदु नाहिं ॥ २९ ॥
·
जैसे भांगार आदि अंतिं, तेचि मध्ये भाव भजति, परि वस्तु विचारेंचि तिं, तैसेंचि हें तुं ॥ ३० ॥
कांहिं चित्तिं नस्मर, तुंचि असभि निरंतर, तुंचि ये तुझे उपचार, अर्पलोंच असे ॥ ३१ ॥
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