Book Title: Marathi - Tattvasara
Author(s): Changdev Vateshwar
Publisher: Prachya Granth Sangrahalay
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[१३] जेथ जेथ मन लागैल, तो तोचि संसारु होइल, म्हणौनि पांगुळ किजैल, निराळंबिं ॥ ७३ ॥
निराकार प्रकाशैल, तेथ साकार उछेदैल, निर्गुण भक्ति उपदेसील, गुरु शिष्यासि ॥ ७४ ॥ ___ ज्या भक्ती निरुतें, पातले हृषीकेशातें, ते न येतीचि मागुते, गर्भवासा ॥ ७५ ॥
ते शक्ति शून्य प्रभा, नाभं फांकली व्योमगर्भा, मनोमय सगर्भा, नाशु होए ॥ ७६ ॥
त्रिगुण गोप्य गहरु, तो स्वामि माझा वेटेश्वरु, तस्य प्रसादें संसारु, उन्मळीला ॥ ७७ ॥
जेणें आत्म ब्रह्म दाविले, माझें मज उपसिलें, असत संसारीक नाहिं जालें, चांगा म्हणे ॥ ७८ ॥
साकार ब्रह्म आतां येथूनु तत्वसार, सांघिजैल ब्रह्म साकार, गुरु संवादें विचार, शिष्यासि पैं ॥ ७९ ॥
जें जें दावीतु जाईल, तें तें शिष्यु त्यजील, बंधु पडों नेंदिल, कल्पनेचा ॥ ८० ॥
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