Book Title: Marathi - Tattvasara
Author(s): Changdev Vateshwar
Publisher: Prachya Granth Sangrahalay
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[१४] जैसी करि जोति घेउनि, गृहवस्तु अबलोकुनि, स्वयं ठेविलें देखौनि, त्यागु कीजै ॥ १ ॥ ___नां तरि ऐली थडीये नावेचा, किजे प्रयत्नु स्विकारु तियेचा, पैलु पारु पावलेयां तिचा, पांगु फिटे ॥ ८२ ॥ _ तैसें देहस्थे देहातीत देखिलें, गुरु प्रसादें जाणांतलें, म्हणौनि त्यजी पुत्रा म्हणीतले, अशेष ही ॥ ८३ ॥
त्या क्रिया कर्म जंजाळ, आणि भ्रांति माया पटळ, स्वप्नावस्था प्रबळ, जाणे पुत्रा ॥ ८४ ॥
जैसी कव्हणी येकि काळ वषां पतित, भुजंगाकार दोरी दीसत, तेलटिकें जालेयां मनत्व, स्वस्थानां आलें ॥८५॥
तैसा अज्ञानकाळ संसारु, आभासु मायामय साकारु, तत्वविचारें असंसारु, तोचि होए ॥ ८६ ॥ ___नांतरि स्वप्निं संपत्ति लाहिजे, विहावो राज्य पाविजे, चेइलेयां असिजे, आपणपेंचि ॥ ८७ ॥
तैसी अज्ञान विस्मृति निद्रा, दृश्यादृश्य स्वप्नभेद, स्वरूपिं चेइलेयां अभेद, स्वयं तोचि ॥ ८८ ॥
तेवि आभास मायामय सकळ, जैसे पाहातां मृग जळ, म्हणोनि त्यजि पुत्रा पाल्हाळ, द्वैत बुद्धि हे ॥ ८९ ॥
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