Book Title: Marathi - Tattvasara
Author(s): Changdev Vateshwar
Publisher: Prachya Granth Sangrahalay
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[९] जैसी दीपकळिका गगनिं, जाए तेथ हारपौनि, तेवि भूतें भूत गिळूनि, शून्य ठाके ॥ ३९ ॥ ___ ऐसा संकोच विकाशु, या वेगळा प्रकाशु,
द्वैताद्वैत आभासु, रूपातीतु पैं ॥ ४० ॥ ___ एवं पद पिंड जालें, रूप रूपातीत बोलिलें, संकळौनि कथिले, भक्तियोग ॥ ४१ ॥ __ ऐसी भक्ति हे प्रधान, एवं गुरुभक्तीचें लक्षण, आतां तूज सांघेन निर्वाण, शिष्यराया ॥ ४२ ॥
हठयोग, आतां साधारण सांघिजैल, हठयोगु बोलिजैल, राजयोगु दाविजैल, तत्वलारें ४३ ॥ ___ जरि हठयोगाची साधना, तरि न वचती देहाभिमान, तेंचि ते अज्ञान, निरसेचिना ॥ ४४ ॥
देहाचें स्थान मान देखौनि, उदास होआवे जाणौनि, अहंभावापासौनि, तरिचि सुटिजे ॥ ४५ ॥
जरि शरीर साधना लागला, तरि अखंड पद चुकला, वृथा अभिमानिं पडला, जन्ममूळिं ॥ ४६ ॥
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