Book Title: Marathi - Tattvasara
Author(s): Changdev Vateshwar
Publisher: Prachya Granth Sangrahalay
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जे दुसरेपणा हाणि, स्वर्गसंसारा धुणि, जे सेवितां निर्वाणिं, स्वयं शिव ॥ ९८॥ ____ हे निर्गुण भक्ति, आइकिजें स्वात्महीति, आहो इये परौति, वस्तु असेचिना ॥ ९९ ॥ ___ आतां वटेश्वराप्रसादें, मी निर्गुणभक्ति अनुवादें,
तरि आइकतु श्रोते विनोदें, चांगा म्हणे ॥ ६०० ॥ ___ तर सांगैन परमशरिराचि स्थिति, ते परिसा निर्गुण भक्ति, जिया कैवल्य प्राप्ति, मोक्षरूप ॥ १ ॥
तिचे विभाग. ते निर्गुण भक्ति द्विधा, रूप रूपातित पदा, गुरुनसादें सानंद, रहस्य कथीन ॥ २ ॥ __पदा पिंडाची स्थिति, रूपरूपातीतप्राप्ति, सबीज भेद वित्पित्ति, प्रथक् सांधैन ॥ ३ ॥ ___पिंडु म्हणिजे कुंडलिणि शक्ति, पद परमहंसु म्हणी. पति, रूप बिंदु कळा ज्योति, एर कळामय ॥ ४ ॥
पद. आता पदाचा विचारु, सांधिजैल नागरु, अवधाने यावें जि अवसरा, एकचित्तपणें ॥५॥
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