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सबकी गति: मेरी गति
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होना-जाना क्या है? आगे तो कुछ है नहीं। क्यों सता रहे हैं आप अपने शरीर को? डालगणी ने कहा- मान लो ! तुम्हारा कहना ठीक है, परलोक नहीं है इसलिए हमने जो तपस्या की, कष्ट सहा, आराम नहीं भोगा, वह व्यर्थ चला जाएगा। इसके सिवाय तो कुछ नहीं होगा। पर बताओ - अगर हमारा मत सही है, परलोक है तो तुम्हारा क्या होगा? सिंघीजी बोले- अगर आपका मत सही है तो हमारे सिर पर इतने जर्बे (जूते ) पड़ेंगे कि धरती भी नहीं झेल पाएगी ।
संस्कृत का प्रसिद्ध श्लोक है-
संदिग्धे ऽपि परे लोके त्याज्यमेवाशुभं बुधैः । यदि नास्ति ततः किं स्यात्, यद्यस्ति नास्तिको हतः ।। परलोक संदिग्ध है। उसके संदिग्ध होने पर भी व्यक्ति को अमुक कर्म छोड़ देने चाहिए। परलोक नहीं है इसलिए मन में जो आए करें, इतना उच्छृंखल व्यक्ति को नहीं होना चाहिए। प्रश्न हुआ - किसलिए ? कहा गया- यदि परलोक नहीं है तो कष्ट सहना व्यर्थ हो जाएगा किन्तु यदि परलोक है तो नास्तिक मारा जाएगा।
एक व्यक्ति कहता है- परलोक नहीं है। प्रश्न हुआ-परलोक नहीं है इसका प्रमाण क्या है? दूसरा कहता है-परलोक है । प्रश्न हुआ— अगर है तो बताओ किसने देखा है? दोनों ओर प्रश्न है । नास्तिक आस्तिक से पूछे - परलोक है, इसका प्रमाण दो? आस्तिक पूछ सकता है-परलोक नहीं हैं, इसका प्रमाण दो । प्रमाण दोनों के पास नहीं है ।
सबकी गति : मेरी गति
केवल इन्द्रियों के आसपास घूमने वाला चिंतन बड़ा खतरनाक होता है । एक युवक के मन में इस प्रकार का चिंतन उत्पन्न होना स्वाभाविक है । उस पर इन्द्रियों का भारी दबाव रहता है। उसे उनके सिवाय दुनिया में कोई सार वस्तु लगती ही नहीं । उसी के आधार पर उसका चिन्तन बढ़ता चला जाता है। लोक और परलोक के विषय में वह संदेहशील बन जाता है। काम-भोग की आसक्ति को उचित ठहराते हुए वह कहता है ।
जणेण सद्धिं होक्खामि इइ बाले पगब्भई ।
कामभोगाणुराएणं, केसं संपडिवज्जई ।।
मैं दुनिया के साथ चलूंगा । दुनिया के अरबों-खरबों आदमी जो काम कर रहे हैं, उसे मैं अकेला नहीं करूंगा तो क्या फर्क पड़ेगा? जैसा सबका होगा, मेरा भी हो जाएगा। जो सबको मिलेगा, मुझे भी मिल जाएगा। इस मामले में वह अपने आपको प्रवाहपाती या सबके साथ चलने वाला मान लेता है। वह कहता है - सबकी गति मेरी गति । मैं जनता के साथ चलूंगा। यह चिंतन इन्द्रिय चेतना में सांस लेने वाले व्यक्ति का चिंतन होता है ।
इन्द्रियातीत चेतना
दर्शन की दूसरी धारा है इन्द्रियातीत चेतना की धारा । इन्द्रियातीत चेतना से सम्पन्न व्यक्ति का सारा दर्शन बदल जाएगा। वह कभी नहीं कहेगा- जो सबको होगा, वह मुझे भी हो जाएगा। वह अकेला सोचेगा । बहुत बड़े लेखकों
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