Book Title: Mahavira ka Punarjanma
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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लेश्या : गध, रस और स्पर्श
५१५
बीमारी क्यों आती है? हम इस प्रश्न पर विचार करें। कुछ बीमारियां बाह्य वातावरण से आती हैं। कुछ ऋतुजनित हैं। सर्दी लगी और जुकाम हो गया। कुछ बीमारियां आहारजनित हैं। आज भोजन इतना दूषित हो गया है, इतने जहरीले पदार्थ उसमें मिल गए हैं कि बीमारी को सहज आमंत्रण मिल जाता है। जब बीज बोया जाता है, छोटा सा पौधा अंकुरित होता है तब से लेकर रसोईघर तक उसे जहर ही जहर का सामना करना पड़ता है। पेड़-पौधों पर बहुत जहरीले पदार्थ छिड़के जाते हैं। न फल शुद्ध है, न ही कोई अन्य खाद्य पदार्थ शुद्ध हैं। बहुत सारे जहरीले रसायनों का अंश हमारे भोजन के साथ जाता है। यह बीमारी का बहुत बड़ा कारण बनता है। कारण है लेश्या
बीमारी का सबसे बड़ा कारण है हमारी लेश्या और भाव। हमारी जो भावनाएं हैं, वे बहुत बीमारियां पैदा करती हैं। एक ग्रन्थि है पिच्यूटरी। इस ग्रन्थि से बारह प्रकार के प्राव होते हैं। ये नाव हमारे शरीर को प्रभावित करते हैं। इनमें एक स्राव है 'एस.एच.टी. हार्मोन।' इस स्राव का कार्य है एड्रीनल ग्लेण्ड को उत्तेजित करना। जब यह स्राव एड्रीनल को उत्तेजित करता है तब एड्रीनेलिन का अतिरिक्त नाव होता है और तब व्यग्रता, अधीरता, अकुलाहट आदि भावनाएं पैदा होती हैं। इस अवस्था में बीमारियों को निमंत्रण मिलता है, बीमारी की पृष्ठभूमि तैयार हो जाती है। हमारी जो रोग प्रतिरोधक शक्ति है, जैविक रासायनिक श्रृंखला है, वह गड़बड़ा जाती है। व्यक्ति बीमारियों से घिर जाता है।
बीमार आदमी कहता है-'मैंने बड़े-बड़े हॉस्पिटल में चेक-अप करवा लिया, सभी प्रकार के टेस्ट करवा लिए। डाक्टर कहते हैं-तुम्हारे सब कुछ नार्मल है, कोई बीमारी नहीं है किन्तु मैं बहुत बड़ी बीमारी भोग रहा हूं।' एक पिता ने अपनी समस्या बताते हुए कहा-'मेरा लडका बहत दुर्बल है। निरन्तर बीमार रहता है। हमारा घर सम्पन्न है। खाने-पीने की कोई समस्या नहीं है, सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं। अच्छे डाक्टर और श्रेष्ठ दवाइयों से भी वह ठीक नहीं हो पा रहा है। उसका शरीर कभी बनता ही नहीं है।'
प्रश्न है-इन समस्याओं का कारण क्या है? एक डाक्टर इन सबका कारण खोजता है शरीर में। वह देखेगा-कहीं कोई जर्स या वायरस तो नहीं है? आधुनिक यंत्र शारीरिक परिवर्तनों को पकड़ लेते हैं। जब शरीर में कोई परिवर्तन दिखाई नहीं देता है तब डाक्टर उसका कारण पकड़ नहीं पाता। केवल शरीर की चिकित्सा करने वाला कारण को पकड़ने में सफल नहीं हो सकता। ये सारी बीमारियां उपाधि से उत्पन्न होती हैं। भावना के स्तर पर ही इनका निदान और चिकित्सा की जा सकती है। गंध का प्रभाव
लेश्यातंत्र में इन समस्याओं का बहुत सुन्दर समाधान मिलता है। निषेधात्मक भाव की जितनी लेश्याएं हैं, कृष्ण, नील और कापोत-इन लेश्याओं के जो पुद्गल हैं, उनके वर्ण, गंध, रस और स्पर्श हैं, वे अनिष्टकर होते हैं। जब निषेधात्मक भाव और अशुभ पुद्गल हमें प्रभावित करते हैं तब व्यक्ति बीमार
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