Book Title: Mahavira ka Punarjanma
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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लेश्या : पौद्गलिक है या चैतसिक
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केवल सलाह के वे हजारों रुपया पारिश्रमिक ले लेते हैं। विज्ञापन दें तो किस रंग का दें। यदि विज्ञापन ठीक रंग का नहीं होगा तो कंपनी फेल हो जाएगी। विज्ञापन में आकर्षक रंग आ गया तो कंपनी चल पड़ेगी । विज्ञापित माल में कुछ दम हो या नहीं, विज्ञापन अच्छा होना चाहिए। यह विज्ञापन का व्यवसाय रंग के आधार पर पनप रहा है।
इस सारे सिद्धांत को जैन दर्शन की भाषा में लेश्या का सिद्धान्त कहा गया। ये सारे रंग द्रव्य लेश्या हैं । हमारा इनसे काम ज्यादा पड़ता है। भाव लेश्या हमारे भीतर की बात है। वह हमारे सारे आचार और व्यवहार को प्रभावित करती है । परिवर्तन के लिए इन दोनों लेश्याओं-द्रव्य लेश्या और भाव लेश्या को जानना जरूरी है। अनेक लोग इस भाषा में सोचते हैं - हम इन सबको क्यों जानें? ये सारे तत्त्वज्ञान के पचड़े हैं। हमें इनसे क्या लेना-देना है। व्यक्ति इस सचाई को भूल जाता है-कोई भी व्यक्ति इन सबको जाने बिना अच्छा जीवन जीने की कला नहीं सीख सकता। जिसे अच्छा जीवन जीना है, उसे यह सब जानना होगा। जिसको पशु-सा जीवन जीना है, वह ऐसी बात सोच सकता है । जीवन की सफलता के लिए इन सारी सचाइयों को जानना अपेक्षित है। लेश्या हमारे जीवन से जुड़ी हुई एक सचाई है। हम उसे जानें, सफल जीवन की कुंजी हमारे हाथ में होगी ।
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