Book Title: Mahavira ka Punarjanma
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 537
________________ लेश्या गंध, रस और स्पर्श ५१६ यह बात डाक्टरों और मेडिकल साइंस पर छोड़ दें, किन्तु क्या भीतर की चीर-फाड़ का काम एक धार्मिक व्यक्ति नहीं कर सकता? क्या आध्यात्मिक चिकित्सा और भाव चिकित्सा का विकास नहीं किया जा सकता? ऐसा हो सकता है किन्तु इसके लिए चिन्तन और मनन की जरूरत है । चढ़ने और उतरने के सोपान भिन्न नहीं होते। क्या आज तक कहीं ऐसी सीढ़ी बनी है, जिसमें चढ़ने के सोपान अलग हों और उतरने के अलग? हंसने और रोने वाली आंख अलग-अलग नहीं होतीं। मानव जिन आंखों से हंसता है, उन्हीं आंखों से रोता है । क्या ऐसा कभी हुआ है कि दो आंखें रोने के लिए होती हैं और दो आंखें हंसने के लिए? वैसे ही जो सीढ़िया चढ़ने के लिए हैं, वे ही उतरने के लिए हैं I केवल उन्हें पकड़ने की जरूरत है। गुरु के पास तीन शिष्य आए, प्रार्थना के स्वर में बोले - 'गुरुदेव ! हम साधना करना चाहते हैं । हमें कोई साधना का सूत्र बताएं?' गुरु ने तीनों से एक प्रश्न पूछा - 'आंख और कान में कितना अंतर है।' पहला व्यक्ति बोला- 'चार आगुंल का ।' दूसरे ने कहा- 'कान से आंख ज्यादा काम आती है। आंखों देखी बात बहुत स्पष्ट होती है। आंखों देखी और कानों सुनी बात में बहुत अंतर होता है ।' तीसरे का जवाब था - 'आंख से हम देख सकते है । किन्तु परमार्थ की बात कान से ही सुन सकते है ।' गुरु ने पहले व्यक्ति से कहा - 'तुम अभी व्यापार करो। तुम्हारा नाप-जोख में रस है । मीटर हाथ में लो और वस्त्रों को नापो। तुम साधना के अधिकारी नहीं हो ।' दूसरे व्यक्ति से कहा - 'तुम अभी न्याय का काम करो। लोगों के झगड़े सुलझाओ। आंख द्वारा देखे गए प्रमाण ज्यादा सच होते हैं ।' तीसरे व्यक्ति से कहा - 'तुम साधना के योग्य हो । मैं तुम्हें आत्मिक ज्ञान दूंगा, क्योंकि तुम परमार्थ की बात में रस लेते हो ।' अध्यात्म की उपयोगिता यही कान, यही आंख सबके पास है । यदि आंख सचाई को देखने लग जाए, कान परमार्थ की बात को सुनने लग जाए तो कुछ नई बातें हमें प्राप्त हो सकती हैं। इसके लिए हमें गहराई में जाना होगा। जहां कुछ देने की बात है, नई बात प्रस्तुत करने का प्रश्न है वहां बहुत गहरे में डुबकियां लेनी होंगी । सतह पर रहने से काम नहीं चलेगा। यदि हम गहरे उतर कर कुछ नई बात खोजें, अध्यात्म चिकित्सा या भाव चिकित्सा के क्षेत्र में लेश्या के सिद्धान्त के कुछ महत्त्वपूर्ण प्रयोग प्रस्तुत करें तो दुनिया को एक ऐसा सूत्र मिलेगा, जिससे अध्यात्म की उपयोगिता बढ़ेगी, यह विश्वास प्रबल होगा - कोरी भौतिकता का नहीं, अध्यात्म का भी एक साम्राज्य है और उसके बिना मनुष्य सुख और शांति का जीवन जी नहीं सकता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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