Book Title: Mahavira ka Punarjanma
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 541
________________ ८६ जीव और अजीव का द्विवेणी संगम एक प्रश्न है-क्या व्यक्ति अपने आपको जानता है? वह शरीर को जानता है या जीव को जानता है? दो दार्शनिक धाराएं हैं-बुद्धिवादी और अतीन्द्रिय-ज्ञानवादी। बुद्धिवाद ज्ञेयवाद है। उसके लिए अज्ञेय कुछ भी नहीं है। उसके सामने जो बुद्धि से जाना जा सकता है, वही सत्य है। पाश्चात्य दार्शनिक प्रोटेगोरस महावीर के आस-पास हुए हैं। उन्होंने कहा • किसी वस्तु का अस्तित्व नहीं है। • यदि है तो ज्ञेय नहीं है। यदि ज्ञेय है तो दूसरे को बताया नहीं जा सकता। अस्तित्व नहीं है, है तो अज्ञेय है और ज्ञेय है तो अवक्तव्य है। अज्ञेयवाद : ज्ञेयवाद महावीर ज्ञेयवादी और अज्ञेयवादी-दोनों हैं। जैन दर्शन में अज्ञेयवाद भी स्वीकृत है इसीलिए कहा गया-छह स्थान ऐसे हैं, जिन्हें छद्मस्थ सर्वभाव से जानता नहीं है, देखता नहीं है। वे ये हैं-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाश, शरीर-प्रतिबद्ध जीव, परमाणु और शब्द। हम जीव को जानते हैं किन्तु उस जीव को जानते हैं, जो शरीर से बंधा हुआ है। हम शरीर-मुक्त जीव को नहीं जानते। दुनिया के पास ऐसा कोई साधन नहीं है, न बुद्धिवाद है, न तर्कवाद है, न यंत्रवाद है, जो शरीर-मुक्त जीव को जान सके। हम परमाणु को नहीं जान सकते। प्रश्न हो सकता है-वैज्ञानिकों ने यंत्रों द्वारा परमाणु को देख लिया है और उसका विस्फोट भी कर लिया है। वैज्ञानिको ने जिस परमाणु को जाना है, जिस परमाणु का विस्फोट किया है, वह परमाणु नहीं है, वह अनन्त परमाणुओं का स्कन्ध है। उसे व्यावहारिक परमाणु कहा जा सकता है, नैश्चयिक परमाणु नहीं। नैश्चयिक परमाणु किसी यंत्र का विषय नहीं बन सकता। न उसे देखा जा सकता है, न उसका विस्फोट किया जा सकता है। यह बात अवश्य है-व्यावहारिक परमाणु का विस्फोट भी इतना भयंकर है तो नैश्चयिक परमाणु का विस्फोट कितना भयंकर होगा? शब्द को भी सर्वभावेन नहीं जाना जा सकता, नहीं देखा जा सकता। ___ यह जैन दर्शन का अज्ञेयवाद है किन्तु उसके साथ-साथ ज्ञेयवाद भी है। इन तत्त्वों को सर्वभावेन नहीं जाना जा सकता, नहीं देखा जा सकता किन्तु कुछ अंशों में जाना जा सकता है, देखा जा सकता है। हम श्रुतज्ञान के द्वारा इन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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