Book Title: Mahavira ka Punarjanma
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 545
________________ ८७ धर्म की सार्वभौमिकता पूरा संसार नियमों से चलता है। मनुष्य जगत भी एक नियम है, वनस्पति जगत भी एक नियम है। प्रकृति के कण-कण में एक नियम है। नियम सामायिक होते हैं, दैशिक और कालिक होते हैं। कुछ नियम सार्वभौम होते है। जो नियम देश और काल में प्रतिबद्ध होते हैं. वे बदलते रहते हैं। सार्वभौम नियम अपरिवर्तनीय होते हैं। अनेक बार नन में एक विकल्प उठता है-जैन आगमों के आधार पर सार्वभौम नियमों की एक तालिका तैयार की जाए। सार्वभौम नियमों का समुच्चय करना बहुत आवश्यक है। उन सार्वभौम नियमों की सूची में धर्म भी एक नियम है। सार्वभौम नियम न दैशिक होता है, न कालिक होता है। वह देशकालातीत नियम है, जागतिक नियम है, सब पर एक समान लागू होता है। इस बात को भगवान महावीर ने पकड़ा। उन्होंने धर्म को भी एक सार्वभौम नियम के रूप में प्रस्तुत किया। ___ जो धर्म को सार्वभौम नियम के रूप में स्वीकार नहीं करते, वे सम्प्रदायवाद को बढ़ावा देते हैं। जो धर्म को सार्वभौम नियम के रूप में देखते हैं, वे अध्यात्मवाद को बढ़ावा देते हैं, सत्य को महत्त्व देते हैं। जैनधर्म सत्य का प्रतिपादन करने वाला धर्म है इसलिए उसने सार्वभौम नियम के आधार पर धर्म की धारणा प्रस्तुत की है। उसने धर्म को देश और काल की सीमा में नहीं बांधा। एक व्यक्ति जैन विश्व भारती में बैठा-बैटा मुक्त हो सकता है। इसमें क्षेत्र की कोई प्रतिबद्धता नहीं है, किसी भी बाह्य वातावरण की कोई प्रतिबद्धता नहीं है। वह जैन मुनि के वेश में भी मुक्त हो सकता है, किसी अन्य संन्यासी के वेश में भी मुक्त हो सकता है। चाहे व्यक्ति पाला कपड़ा पहने हुए है, गेरुआ, लाल या सफेदं कपड़ा पहने हुए है। वेश की कोई प्रतिबद्धता नहीं है। पुरुष भी मुक्त हो सकता है, स्त्री भी मुक्त हो सकती है, नंपुसक भी मुक्त हो सकता है। व्यक्ति किसी भी लोक में सिद्ध हो सकता है। ऊंचे लोक में भी सिद्ध हो सकता है, नीचे लोक में भी सिद्ध हो सकता है, तिर्यक् लोक में भी सिद्ध हो सकता है। अणुव्रत : सार्वभौम धर्म का व्यावहारिक रूप ___मुक्त होने में कोई प्रतिबद्धता नहीं रखी गई, धर्म करने में भी किसी प्रकार की प्रतिबद्धता नहीं रखी गई। अणुव्रत का एक नियम है-जाति, लिंग, वर्ण या सम्प्रदाय के आधार पर भेदभाव न किया जाए। अणुव्रत मानव-धर्म है। कहा जा सकता है-अणुव्रत सार्वभौम धर्म का व्यावाहारिक रूप है। समस्या यह है-सम्प्रदाय का माध्यम जटिल बन गया। धर्म के सार्वभौम नियम को देश और काल से प्रतिबद्ध बना दिया गया, धर्म की सार्वभौमिकता को सम्प्रदाय के कटघरे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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