Book Title: Mahavira ka Punarjanma
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 548
________________ ५३० महावीर का पुनर्जन्म बना दिया। अमूर्त ज्ञान को शास्त्रीय ज्ञान बना दिया। उसने काल को भी घड़ियों में बांट दिया। जब किसी चीज को व्यवहार में लाना होता है तब उसे सूक्ष्म से स्थूल में लाना होता है। जब विकास करना होता है तब स्थूल से सूक्ष्म में जाना होता है। हमारे सामने ये दो सूत्र हैं। हम कभी स्थूलं से सूक्ष्म की ओर जाएं, और कभी सूक्ष्म से स्थूल की ओर जाएं। अणुव्रत आंदोलन सूक्ष्म से स्थूल की ओर जाने का आन्दोलन है। अमूर्त धर्म की बात समझ में नहीं आती। अमूर्त का मूर्तीकरण है-अणुव्रत आन्दोलन। उपासना की दो पद्धतियां हैं-सगुण उपासना और निर्गुण उपासना। निर्गुण यानी निराकार की उपासना। सगुण साकार की उपासना है। यदि आम आदमी से कहा जाए-तुम यहां बैठ जाओ और निरन्तर शुद्ध आत्मा की उपासना करो। वह इसे नहीं समझ पाएगा, भटक जाएगा। यदि उसे कहा जाए-अमुक आकार की उपासना करो। उसकी श्रद्धा जाग जाएगी। डॉक्टर लोहिया कहा करते थे—मैं सगुण भाषा में बोलता हूं। निर्गुण भाषा जनता की समझ में नहीं आती। इसीलिए धर्म का भी सुगण रूप प्रस्तुत किया गया। अणुव्रत आन्दोलन चलाने का अर्थ है-सगुण बात जनता की समझ में आ जाए। व्यक्ति को कहा जाए तुम्हें झूठ नहीं बोलना है, झूठा तौल-माप नहीं करना है, मिलावट नहीं करनी है। ये बातें उसकी समझ में आ सकती हैं। उसे कहा जाए तुम्हें निर्विचार ध्यान करना है। वह इसे नहीं समझ पाएगा। यह बात उसकी समझ से परे होती है। भगवान महावीर ने श्रावक के लिए बारह व्रतों की जो संहिता दी, वह धर्म का व्यावहारिक रूप है। आधार हैं सार्वभौम नियम धर्म के दो रूप बन गए-सार्वभौम रूप और व्यावहारिक रूप। महर्षि पतंजलि ने लिखा-'सार्वभौमं महाव्रतं, देशकालावच्छिन्नानि व्रतानि, महाव्रत सार्वभौम हैं। व्रत देश और काल से अवच्छिन्न होते हैं। इन दोनों नियमों को समझकर चलना आवश्यक है। सार्वभौम नियम हमारा आधार है। यदि उसका अतिक्रमण होगा तो धर्म की आत्मा मर जाएगी, उस पर सम्प्रदाय हावी हो जाएगा। आज साम्प्रदायिक कट्टरता सबसे बड़ी समस्या है किन्तु धर्म कोई समस्या नहीं है। इस सार्वभौम धर्म को आकार देने में, उसे अभिव्यक्ति देने में आचार्य भिक्षु और उनकी परम्परा अग्रणी है। तेरापंथ धर्मसंघ ने धर्म के सार्वभौम नियम को सम्प्रदाय से परे हटाकर जनता के सामने रखा और उसका ज्वलन्त रूप है-अणुव्रत आंदोलन। यह धर्म के सार्वभौम एवं असांप्रदायिक स्वरूप का पुनरुच्चारण है। यदि धर्म का यह रूप समझ में आ जाए तो साम्प्रदायिकता का विष कम होगा। साम्प्रदायिकता के नाम पर जितने दंगे हो रहे हैं, वे कम होंगे। इस तथ्य को जनता के सामने बार-बार प्रस्तुत करना आवश्यक है-सम्प्रदाय नीचा है, धर्म ऊंचा है। जब-जब सम्प्रदाय का आसन ऊंचा होता है, लड़ाइयां बढ़ती हैं, कलह और साम्प्रदायिक उन्माद जन्म लेता है। जब-जब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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