Book Title: Mahavira ka Punarjanma
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 549
________________ धर्म की सार्वभौमिकता ५३१ धर्म का आसन ऊंचा होता है, शान्ति ही शांति प्रसार पाती है। सुप्रसिद्ध गांधीवादी विचारक जैनेन्द्रजी कहा करते थे—मैंने तेरापंथ में एक विशेषता देखी। यहां त्याग का आसन ऊंचा रहता है और धनी लोगों का आसन नीचा रहता है। धनी लोग आचार्यश्री की दृष्टि और कृपा को देखते रहते हैं। यह आवश्यक है-धर्म का स्थान पहला रहे और सम्प्रदाय का स्थान दूसरा। यदि ऐसा होता है तो सार्वभोम धर्म का नियम सम्पूर्ण मानवजाति के लिए सुखद और कल्याणकारी बन सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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