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नैतिकता का आधार : नानात्व का बोध
बड़ा भाई बोला-'मेरी दशा खराब हो गई। मैं बुराई में फंस गया, बुरे आचरण में डूब गया। सारी राशि उसमें समाप्त हो गई। खाने को रोटी नहीं बची। लकड़ी लाने का काम करने लगा। रोज लकड़ी लाना और बेचना, रोज कमाना और रोज खाना। बस, यही मेरा भाग्य बन गया।'
तीनों भाई चले, पिता के पास पहुंचे। पिता ने बड़े भाई से पूछा---'बताओ! तुमने क्या कमाया?' '
वह रोने लगा। उसने व्यथा भरे स्वर में कहा–'पिताजी! गया था तब हाथ भरा था और अब खाली हाथ आ रहा हूँ।' उसने अपनी सारी स्थिति बताई।
पिता ने कहा-'बैठ जाओ।' दूरे लड़के से पूछा-'तुमने क्या कमाया?' उसने कहा-'आपने जो दिया था, वह सुरक्षित है।' पिता ने तीसरे लड़के से भी यही प्रश्न पूछा। उसने कहा-'ये बही-खाते देख लें।'
सेठ बही-खातों को उलट-पुलट कर देखने लगा। उसमें अपार संपदा का ब्यौरा था। सेठ प्रसन्न हो गया।
तीन बनिए समान राशि को लेकर गए। एक ने मूल को गंवा दिया, एक मूल को वापस लेकर आया और एक ने सम्पदा को अथाह बना दिया। यह एक उपमा है, उत्तराध्ययन सूत्र का बहुत मार्मिक उदाहरण है। मानवीय सन्दर्भ
इस व्यावहारिक उदाहरण को मानवीय सन्दर्भ में भी देखा-परखा जा सकता है। मनुष्य भी तीन प्रकार के होते हैं। एक मनुष्य बना और बुराइयों में फंस गया। बुरे व्यवहार से वह मूल को ही खो देता है। वह मर कर नरक में जाता है, अपनी मूल पूंजी मनुष्य जीवन से ही वंचित हो जाता है। दूसरे प्रकार का मनुष्य वह है, जो न ज्यादा धर्म करता है और न बुराई में जाता है। उसकी प्रकृति सरल होती है, जीवन सादा होता है। वह मरकर मनुष्य बन जाता है, अपनी मूल पूंजी मनुष्य जीवन को सुरक्षित रख लेता है। एक मनुष्य ने तपस्या की, संयम की आराधना की, स्वाध्याय और ध्यान का आचरण किया। जीवन को खूब तपाया, साधा, इन्द्रियों का संयम किया। उसने अपार लाभ कमा लिया। वह मरने के बाद देवगति में चला जाता है, मूल पूंजी मनुष्य जीवन को बहुत अधिक बढ़ा लेता है। नानात्व का कारण : व्यक्ति का आचरण
___ नानात्व का कारण है अपना-अपना आचरण। आचरण की विभिन्नता से व्यक्तियों में विभिन्नता होती है। एक मनुष्य मरने के बाद नरक में जाता है, एक मरने के बाद मनुष्य बना रहता है और एक मरने के बाद देवता बन जाता है। यह नानात्व व्यक्ति के आचरण पर, उसके पुण्य-पाप पर अवलम्बित है। इस प्राकृतिक नियम को मिटाया नहीं जा सकता। केवल कानूनी नियम इस विषय में प्रभावी नहीं होते।
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