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अस्तित्वाद
गति तत्त्व : स्थिति तत्त्व
जैन दर्शन ने गतित्त्व को भी स्वीकार किया । एक ऐसा तत्त्व है, जो गति में सहयोग कर रहा है, गति में सहयोगी हो रहा है। स्थूल जगत में करना अलग होता है, होना अलग होता है। सूक्ष्म जगत में करना और होना — दोनों एक बन जाते हैं। उसमें बींग --होना और डूइंग — करना में अन्तर नहीं रहता । सब कुछ अस्तित्व में चला जाता है । हमें गति तत्त्व का सतत सहयोग मिल रहा है । गति तत्त्व के सहयोग के बिना हाथ नहीं हिल सकता, आंख की पलकें नहीं झपक सकतीं, श्वास नहीं लिया जा सकता, रक्त संचरण नहीं हो सकता, सूक्ष्मातिसूक्ष्म स्पंदन का होना भी संभव नहीं बनता। जिस गति-तत्त्व के सहयोग से सारी क्रियाएं निष्पन्न हो रही हैं, उसी गति तत्त्व का नाम है, धर्मास्तिकाय । एक ऐसा तत्त्व है, जो स्थिति में सहयोग कर रहा है। अगर केवल गति-तत्त्व होता, स्थिति तत्त्व नहीं होता तो सारा जगत गतिशील ही बना रहता, उसमें कही स्थायित्व नहीं होता । गति तत्त्व के साथ-साथ स्थिति-तत्त्व भी काम कर रहा है। स्थिति-तत्त्व है - अधर्मास्तिकाय ।
धर्मास्तिकाय और अधर्मातिकाय — ये दोनों तत्त्व विश्व की व्यवस्था को बनाए हुए हैं। गतिशीलता और स्थितिशीलता - दोनों प्रत्येक व्यक्ति के साथ जुड़े हुए हैं।
विश्व - व्यवस्था के मूलभूत तत्त्व
धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय — ये तीन हमारी विश्वव्यवस्था के मूलभूत तत्त्व हैं, किन्तु अव्यक्त हैं. अदृश्य हैं और एकरूप हैं । जो अनेकरूपता दिखाई दे रही है, जगत में जो नानात्व है, उसमें इनका कोई हिस्सा नहीं है । जो नानात्व दिखाई दे रहा है, जो विश्व का रंगमंच है, उसके अभिनेता हैं जीव और पुद्गल । ये दो तत्त्व ऐसे हैं, जो संसार को व्यक्त बनाते हैं। एक शक्ति है व्यंजना की शक्ति । वह नाना रूपों का निर्माण करती है, अनेक रूपों को प्रकट करती है। आज के वैज्ञानिक नाना रूप बनाने में लगे हुए हैं। एक वनस्पति जगत् के अनेक रूप बन रहे हैं । सब जानते हैं-अमरूद में बीज होते हैं। पुराने लोगों ने नियम बनाया - बिना बीज का अमरूद नहीं खाना चाहिए। बीज को निकालकर कोरा अमरूद खाना अच्छा नहीं है । किन्तु आज कृषि वैज्ञानिकों ने ऐसा अमरूद तैयार किया है, जिसमें बीज नहीं हैं। ऐसे अंगूर पैदा किए जा रहे हैं, जिनमें बीज नहीं हैं। नई-नई कलमें लग रही हैं और नए-नए रूप पैदा होते जा रहे हैं 1
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नानात्व का कारण
जीव नाना रूपों का निर्माण कर रहा है । यह सोचना भ्रान्ति है कि जगत के नानात्व का कारण मनुष्य है । केवल मनुष्य ही नहीं, छोटे-छोटे जीव भी नाना रूपों का निर्माण करते हैं। पोधा किसने बनाया? पेड़ किसने बनाया? पत्थर किसने बनाया? पानी और मिट्टी को किसने बनाया? हीरा और मोती किसने बनाया? छोटे-छोटे जीव मिलकर हीरा बना देते हैं । एक छोटा-सा जीव, छोटा-सा
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