Book Title: Mahavira ka Punarjanma
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 456
________________ ४३८ महावीर का पुनर्जन्म सुख का स्रोत __ यह महत्त्वपूर्ण प्रश्न है-हमें ऐसे संसार चक्र में रहते हुए, दुःखपूर्ण जीवन जीते हुए कोई कठिनाई नहीं होती और मोक्ष जाने में, अशरीरी अवस्था में रहने में कठिनाई होती है। हम इस तर्क के परिप्रेक्ष्य में संसार और मोक्ष की तुलना करें तो हमारा दृष्टिकोण बदल जाएगा। हमारा कथन होगा-निगोद और नरक में जाने की अपेक्षा, तिर्यञ्च, मनुष्य आदि योनियों में भटकते रहने की अपेक्षा मोक्ष में रहना अच्छा है। दिगम्बर परम्परा में मान्यता है भगवान ऋषभ छह माह तक कायोत्सर्ग की मद्रा में खडे रहे। बाहबली एक वर्ष तक कायोत्सर्ग की मद्रा में प्रतिमा की भांति खड़े रहे। उनका शरीर लताओं से घिर गया, पंछियों ने शरीर पर घोसले डाल दिए। आगमों में कहा गया-साठ हजार वर्ष तक खड़े-खड़े कायोत्सर्ग किया जा सकता है। यह कायोत्सर्ग की उत्कृष्ट स्थिति है। इस कालचक्र के लगभग दो काल खण्ड-पांचवें, छट्टे आरे तक व्यक्ति इस स्थिति में रह सकता है। साठ हजार वर्ष तक शरीर में रहते हुए भी अशरीर की भांति रहा जा सकता है। प्रश्न होता है-क्या व्यक्ति को ऊब नहीं आती? समाधि में बैठा हुआ आदमी ऊबता नहीं है। उसके भीतर सुख का अथाह सागर लहराने लगता है। सुख का एक स्रोत फूट पड़ता है। ऊबने का प्रसंग ही प्रस्तुत नहीं होता। समाधिस्थ व्यक्ति को साठ हजार वर्ष साठ हजार मिनट जितने भी नहीं लगते। हम मोक्ष के सुख की कल्पना करें। सारे संसार के सुख को मिला दें, उन्हें एक जगह पिण्डीभूति कर लें और उसे तराजू के एक पल्ले में रखें। तराजू के दूसरे पल्ले में मोक्ष के सुख को रखें। सारे संसार का सुख एक तरफ और मोक्ष का सुख दूसरी तरफ। इस उपमा के द्वारा कहा गया इस स्थिति में भी मोक्ष के सुख का पलड़ा बहुत भारी रहेगा। दुनिया के सारे सुखों से अनन्त गुना ज्यादा है मोक्ष का सुख। जिस आत्मा को इतना सुख मिल गया है वह क्यों ऊबेगी? उसे मनोरजंन में जाने की अपेक्षा ही क्यों होगी? वह व्यक्ति मनोरजंन करना चहता है, जो दुःख का जीवन जीता है। वह व्यक्ति टी.वी. और सिनेमा देखना चाहता है, जो तनाव का जीवन जीता है। जहां व्यक्ति आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक-इन तीनों तापों से मुक्त रहता है, निरन्तर आत्मानुभूति और अनन्त सुख में लीन रहता है, वहां थकान या ऊब का प्रश्न ही कहां प्रस्तुत होगा? विदेश है संसार प्रत्येक व्यक्ति मोक्ष में जाना चाहता है किन्तु मोक्ष का दर्शन बहुत जटिल है, बहुत कठिन है। अशरीर होने की बात को समझ पाना बहुत मुश्किल है। व्यक्ति का शरीर से इतना परिचय है कि वह उसे छोड़ने की बात से ही कंपित हो जाता है। आदमी मौत से डरता है। इस डर का कारण है शरीर की आसक्ति। अनेक व्यक्ति मरते दम तक रोते रहते हैं। शरीर के साथ इतना मोह हो जाता है कि उसे छोड़ना बहुत कष्टदायी लगता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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