Book Title: Mahavira ka Punarjanma
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 491
________________ कर्मवाद ४७३ तो आट कर्म के आठ कोष बने हुए हैं और उनके भीतर आत्मा है। आठ कर्मों की एक पौद्गलिक संरचना है, जो आत्मा को घेरे हुए है, बांधे हुए है। कर्म या कर्मशरीर आत्मा के सबसे ज्यादा निकट है और यह आत्मा को संसार के चक्र में फंसाए हुए है। इटली का एक प्रसिद्ध कवि हुआ है-तारक्वोटो तासो। वह एक बार फ्रांस के राजा चार्ल्स नवम के दरबार में गया। राजा ने पूछा-'कविवर! दुनिया में सबसे सुखी कौन?' कवि ने उत्तर दिया-'ईश्वर।' राजा बोला-'ईश्वर तो हमारे काम का नहीं है। दूसरे नम्बर का सुखी कौन है?' कवि बोला-'जो ईश्वर के निकट है।' ईश्वर के निकट है कर्म। निकट होना अलग बात है और आत्मीय होना अलग बात है। आत्मा के निकट कर्म होते हैं किन्तु वे कभी तद्रूप नहीं बनते, आत्मीय नहीं बनते। वे सदा आत्मा से अलग रहते हैं, पृथक् रहते हैं। आत्मा का पहला घेरा है कर्म और वह उसे प्रभावित कर रहा है। आत्मा और कर्म यह एक सचाई है-आदमी दूर रहकर किसी को प्रभावित नहीं कर सकता। निकट रहने वाला व्यक्ति ही प्रभावित करता है। अच्छे कार्य के लिए प्रभावित करे या बुरे कार्य के लए प्रभावित करे, किन्तु प्रभावित करने का सामर्थ्य निकट रहने वाले व्यक्ति में ही ज्यादा होता है। एक व्यक्ति हिन्दुस्तान में बैठा है और उसका कर्म मास्को या वाशिंगटन में घूम रहा है तो उसका प्रभाव बहुत सीमित होगा। कर्म आत्मा से दूर नहीं है। वह एक क्षेत्रावगाही है। पूछा गया-'जीवों का कर्म से संबंध क्या है?' कहा गया- 'लोलीभाव संबंध है, दोनों एकमेक बने हुए हैं।' एक उपमा दी गई-जैसे दूध और पानी मिले हुए हैं वैसे ही आत्मा के प्रदेश और कर्म पुद्गल मिले हुये हैं। जैसे दूध और पानी का अस्तित्व अलग-अलग है वैसे ही आत्मा और कर्म-दोनों अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए हुए हैं। जैसे दूध का अपना अस्तित्व है, पानी का अपना अस्तित्व है वैसे ही आत्मा का अपना अस्तित्व है, कर्म का अपना अस्तित्व है। वातावरण का प्रभाव आज कर्म को व्यापक संदर्भ में समझना आवश्यक है। वर्तमान के वैज्ञानिकों ने जीवन और व्यक्तित्व का बहुत विश्लेषण किया है। किन्तु वे अभी तक जीवन की अनेक गुत्थियों को सुलझाने में सफल नहीं हुये हैं। मनोविज्ञान के अनुसार जीवन की व्याख्या का एक कोण है-वातावरण, पर्यावरण या परिस्थिति। व्यक्तित्व विकास का एक आधार है परिस्थिति। एक बच्चे को जैसा परिवेश मिला जैसी परिस्थिति मिलीं, वह वैसा ही बन गया। यदि वह अच्छे वातावरण में रहेगा तो अच्छा बन जाएगा। यदि वह बुरे वातावरण में रहेगा तो बुरा बन जाएगा। यह एक आम धारणा है और बहुत पुरानी धारणा है। दो तोतों वाली कथा प्रसिद्ध है। एक तोता संन्यासी के पास रहा, अच्छा बन गया। एक तोता चोर के पास रहा, बुरा बन गया। दोनों के मां-बाप .एक थे किन्तु दोनों को भिन्न-भिन्न परिवेश मिला और उनका व्यवहार भिन्न-भिन्न हो गया। किसी व्यक्ति को आते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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