Book Title: Mahavira ka Punarjanma
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 523
________________ ५०५ लेश्या और रंग कठिन है संतुलन जीवन की एक व्याख्या की जा रही है-स्ट्रगल इज लाइफ-संघर्ष ही जीवन है। यह विकास की परिभाषा है-जीवन एक संग्राम है, युद्ध है। उसमें लड़ना है, संघर्ष करना है और संघर्ष करके आगे बढ़ना है। आज समाज में कितनी टकराहट चल रही है। एक दूसरे की टांग खींचना, एक दूसरे को पछाड़ना-यह केकड़ावृत्ति समाज में कितनी चल रही है। इस केकड़ावृत्ति की अवस्था में आदमी को आगे बढ़ना है, अपना विकास करना है। इस स्थिति में शांति और संतुलन को बनाए रखना कितना कठिन होता है। संतुलन का जीवन जीना आसान बात नहीं है। एक दिन एक व्यक्ति बहुत परेशान लग रहा था। मित्र ने पूछा-'क्या बात है? आज इतने परेशान क्यों हो?' उसने कहा- 'मैं बहुत मुसीबत में फंस गया हूं?' मित्र बोले-'तुम्हारे क्या मुसीबत हो सकती है? तुम्हारे दोनों लड़के सम्पन्न है। खूब धन कमा रहे हैं। तुम्हें किस बात की कमी है?' 'तुम ठीक कहते हो। मैंने लड़कों को पढ़ाया। एक डाक्टर बन गया और एक वकील। उनका यह व्यवसाय ही मुसीबत का कारण है।' 'उनके व्यवसाय से आपकी मुसीबत का लेना-देना क्या है?' 'हुआ यह कि एक एक्सीडेंट में मेरे पैर में चोट लग गई, पैर में घाव हो गया। जो डाक्टर है, वह कह रहा है-पिताजी! घाव को जल्दी ठीक कर लें अन्यथा इसमें रस्सी पड़ जाएगी। हो सकता है फिर पैर काटने के सिवाय कोई विकल्प न. रहे।' 'यह तो अच्छी बात है। इसमें मुसीबत का प्रश्न ही कहां है? 'लेकिन जो लड़का वकील है, वह कह रहा है-पिताजी! अभी घाव को ठीक नहीं करना है। इसे बढ़ने दें। जब घाव गहरा हो जाएगा तब मैं दावा करूंगा और पूरा हर्जाना वसूल करूंगा। यही मेरी मुसीबत है।' समाधान है लेश्या यह जीवन का संघर्ष है, टकराहट है। व्यक्ति दोनों ओर से खींचा जा रहा है। एक लड़का कहता है-ठीक कर लें और एक लड़का कह रहा है-घाव को और गहरा होने दें। यह जीवन का विचित्र संघर्ष है। इसमें प्रत्येक व्यक्ति जी रहा है और संघर्षों को झेल रहा है। परिवार का संघर्ष है, भाई-भाई का संघर्ष है, पति-पत्नी का संघर्ष है, समाज के साथ भी संघर्ष है। राजनीति में चले जाएं तो संघर्ष ही संघर्ष है। इस टकराहट, संघर्ष और प्रतिस्पर्धा- की स्थिति में आदमी स्वस्थ, शांत एवं संतुलित जीवन कैसे जीए, यह एक प्रश्न है और इसका समाधान है लेश्या का प्रयोग। हम नमस्कार मंत्र का पांच रंगों के साथ प्रयोग करें, शान्त एवं सन्तुलित जीवन की बात हाथ में आ जाएगी। ये बाहरी संघर्ष चलते रहेंगे, दुनियां का स्वभाव मिटेगा नहीं पर व्यक्ति के भीतर कोई संघर्ष नहीं रहेगा, भीतर में कोई चूल्हा नहीं जलेगा। अगर भीतर में आग न जले तो समस्या पैदा नहीं होगी। यदि व्यक्ति अपने आप को स्वस्थ, शांत एवं संतुलित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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