Book Title: Mahavira ka Punarjanma
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 503
________________ कर्म : विपाक और स्थिति ४८५ दुःखी बन जाते हैं। उन्हें अपने बुरे कर्मों का फल लम्बे समय तक भुगतना पड़ता है, अनेक बार भुगतना पड़ता है। विपाक के दो प्रकार कर्म का विपाक दो प्रकार से होता है तथा-विपाक और अन्यथा-विपाक। तथा-विपाक का अर्थ है-जिस रूप में कर्म किया, उसे उसी रूप में भोग लेना। जैसे एक व्यक्ति ने किसी के पुत्र को मार दिया। अगले जन्म में उसने उसके पुत्र को मार दिया। यह तथा-विपाक है। एक व्यक्ति ने किसी व्यक्ति का धन चुरा लिया, दूसरे व्यक्ति ने भी उसका धन चुरा लिया और बदला ले लिया। दूसरा है अन्यथा-विपाक। एक व्यक्ति ने किसी के पुत्र को मार डाला। सामने वाला व्यक्ति उसके डाका डलवा देता है, चोरी करवा देता है, उसके भूखों मरने की नौबत आ जाती है। यह है अन्यथा-विपाक। कर्म विपाक के ऐसे अनेक नियम हैं। यदि उनका पूरा अध्ययन किया जाए तो अध्यात्म के नियमों को समझा जा सकता है। अध्यात्म के सैकड़ों नियम हैं। केवल उच्चारण से उन्हें नहीं समझा जा सकता। जैन साहित्य में मृगालोढ़ा की घटना उपलब्ध होती है। वह राजा के घर जन्मा। उसने एक रानी की कुक्षी से जन्म लिया पर वह जन्मा लोढ़े जैसा। न मरा हुआ और न जिन्दा, न पत्थर और न आदमी। उसकी अवस्था विचित्र थी। उसके शरीर से इतनी बदबू आती कि कोई भी व्यक्ति उसके पास नहीं जा सकता। गौतम स्वामी के मन में उसे देखने की जिज्ञासा उभर आई। वे उसे देखने गए। रानी ने कहा--'महाराज! नाक बन्द कर लीजिए, दुर्गध को सह नहीं पायेंगे।' रानी उसकी परिचर्या करती थी और गौतम उसे देखकर विचलित हो गए। गौतम ने भगवान से पूछा-'भंते! आज मैंने एक लोढ़ा देखा। उसकी दशा अत्यन्त करुणा पैदा करने वाली है। मेरे मन में यह प्रश्न उभर रहा है-वह राजा के घर जन्म लेकर भी ऐसी दशा क्यों भोग रहा है?' भगवान बोले-'गौतम! वह कैसा है, इसे मत देखो! उसने क्या-क्या किया है, उसे देखो। तुम उसके पूर्वजन्म के वृत्त को देखो, तुम्हारा प्रश्न समाहित हो जाएगा।' ___ जैन आख्यानों में भवान्तरों का बहुत वर्णन मिलता है। रामायण तथा अन्यान्य बड़े ग्रन्थों में भी ऐसे प्रसंगों की बहुलता है। अमुक व्यक्ति ने पूर्वजन्म में क्या किया और उसे इस जन्म में उसका क्या परिणाम मिला? ऐसे प्रसंगों को, भवान्तर के घटना-क्रमों को जानने से व्यक्ति अनेक नियमों को समझने का अवसर पा लेता है। विचित्र होते हैं कर्म विपाक कर्म के विपाक बहुत विचित्र होते हैं। यदि प्रज्ञावान सूत्र के कर्मवाद को पढ़ा जाए तो कर्म विपाक के नियमों को समझा जा सकता है। कर्म का विपाक कब होता है? कैसा होता है? कर्म विपाक में कई कारण बनते हैं। कहा गया'गतिं पप्प, ठितिं पप्प, भवं पप्प, पोग्गलं पप्प, पोग्गल-परिणामं पप्प। गति, स्थिति, भव, पुद्गल, पुद्गल परिणाम-ये सारे कर्म विपाक के कारण हैं। द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, आदि भी कर्म विपाक में निमित्त बनते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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