Book Title: Mahavira ka Punarjanma
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 518
________________ महावीर का पुनर्जन्म तो नहीं हो रहा है, जिससे मेरा चेहरा अधिक कुरूप हो जाए। सुकरात के इस कथन ने शिष्यों की जिज्ञासा और सन्देह को समाहित कर दिया। ५०० लेश्या का सिद्धान्त हमारे सामने एक ऐसा दर्पण है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपना चेहरा देख सकता है। लेश्या का यह सिद्धान्त भगवान महावीर की दार्शनिक जगत को बहुत बड़ी देन है। दर्शन और अध्यात्म के जगत में इसका मूल्य सदा रहा है। आज लेश्या का सिद्धान्त वैज्ञानिक जगत में प्रतिष्टित होता जा रहा है। वह समय आने वाला है-जहां निदान करने के बहुत सारे यंत्र नाकामयाब होंगे वहां यह आभामंडल का सिद्धान्त और यह निदान का दर्पण अपनी शक्तिशाली भूमिका निभाने के लिए प्रस्तुत रहेगा। तीन महीने या छह महीने पहले यह घोषणा की जा सकेगी- क्या बीमारी होने वाली है? यह भी बताया जा सकेगा - कब मौत होने वाली है? यह विषय आज विकास की दिशा में गतिशील बना हुआ है और इससे कुछ नई संभावनाएं जन्म लेंगी। ऐसा विषय हमारे लिए ऐतिहासिक, दार्शनिक और आध्यात्मिक — सब दृष्टियों से मननीय है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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