Book Title: Mahavira ka Punarjanma
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 515
________________ लेश्या सिद्धान्त ऐतिहासिक अवलोकन इन अभिजातियों का वर्गीकरण इस प्रकार है १. कृष्णाभिजाति २. नीलाभिजाति ३. लोहिताभिजाति ४. हारिद्राभिजाति ५. शुक्लाभिजाति ६. परमशुक्लाभिजाति क्रूर कर्म करने वाले बौद्ध भिक्षु एक शाटक निर्ग्रन्थ श्वेत वस्त्रधारी या निर्वस्त्रमुनि ४६७ आजीवक आजीवक आचार्य निर्ग्रन्थों में एक शाटक निर्ग्रथों की परंपरा थी । जैन मुनि एक शाटक कंधे पर डाल लेते, न कुछ नीचे पहनते और न ऊपर ओढ़ते । जब महावीर मुनि बने थे तब वे एक शाटक में ही बने थे । यह कह दिया जाता है - महावीर जब दीक्षित हुए तब उन्होंने कंधे पर एक वस्त्र डाल लिया पर वस्तुतः महावीर एक शाटक पंरपरा में दीक्षित नहीं हुए थे। एक शाटक का अर्थ यही हो सकता है कि थोड़ा सा लज्जा का निवारण हो जाए। हारिद्राभिजाति में श्वेत वस्त्रधारी और निर्वस्त्र मुनियों को लिया गया है। उससे यह लगता है-उस समय भी श्वेत वस्त्रधारी मुनि थे और उनकी एक परंपरा थी। बौद्ध भिक्षु नीलाभिजाति में, आजीवक शुक्लाभिजाति में और आजीवकों के आचार्य थे परम शुक्लाभिजाति में । यह वर्गीकरण लेश्या के सिद्धान्त के साथ कहां मेल खाता है ? थोड़े नाम अवश्य मिल गए हैं पर यह लेश्या का सिद्धान्त बिल्कुल नहीं है । इन रंगों के आधार पर संप्रदायों का एक वर्गीकरण अवश्य हो गया । नीलाभिजाति बौद्ध भिक्षु हैं। अमुक रंग वाले एक शाटक निग्रंथ हैं और अमुक रंग वाले आजीवक हैं। एक प्रकार से सारे संप्रदायों को बांट दिया गया। इसे लेश्या का सिद्धान्त कैसे कहा जा सकता है? प्रोफेसर ल्यूमेन और डाक्टर हर्मन जेकोबी ने इस आधार पर यह कह दिया- महावीर ने लेश्या का सिद्धान्त आजीवकों से लिया है। इसे लेश्या का सिद्धान्त कैसे कहा जा सकता है? महावीर का लेश्या सिद्धान्त महावीर ने जिस लेश्या सिद्धान्त का प्रतिपादन किया, वह दो धाराओं में चलता है। एक धारा है भाव की और दूसरी धारा है रंग की । भाव और रंग-इन दोनों का योग, यह है लेश्या का सिद्धान्त । यह अध्यात्म का महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है । लेश्या को छोड़कर अध्यात्म की बात नहीं कही जा सकती। अकेला लेश्या का सिद्धान्त ऐसा है, जो अध्यात्म की दिशा में बहुत महत्त्व का है । एक लौकिक कहानी है। सैला, सांप और सियार - तीनों मित्र थे। जहां मित्रता होती है वहां हर प्रकार की चर्चा चल पड़ती है। एक बार तीनों के मन में प्रश्न उभरा, हम तीनों में बुद्धिमान कौन है? जहां बुद्धिमत्ता का प्रश्न आता है वहां प्रत्येक व्यक्ति अपने आपको बुद्धिमान बताने की कोशिश करता है । यदि दो छोटे बच्चों से पूछा जाए - तुम दोनों में बुद्धिमान कौन है? उन दोनों का एक साथ उत्तर आएगा - बुद्धिमान मैं हूं । बच्चा कभी दूसरों को बुद्धिमान स्वीकार नहीं करता। जो दूसरों को बुद्धिमान मानता है, वह बच्चा ही नहीं है और जो दूसरों को बुद्धिमान नहीं मानता है, वह बड़ा होकर भी बच्चा है। प्रत्येक आदमी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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