Book Title: Mahavira ka Punarjanma
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 479
________________ त्याग है दुःख से बचने के लिए ४६१ को निमंत्रण। आंत की खराबी बीमारी की जड़ है। पंद्रह बीस वर्ष की उम्र में ही अनेक बच्चों के दांत खराब हो जाते हैं, उन्हें निकलवाने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहता। हम सोचें-दांत किसने खराब किए? आंतें किसने खराब की? यदि माता-पिता प्रारंभ से ध्यान रखते, बच्चों को टोफियां, गुटका आदि छुड़ाते, उनमें त्याग के संस्कार भरते तो शायद यह स्थिति नहीं बनती। चोर क्यों बना? इंग्लैण्ड में एक व्यक्ति को फांसी की सजा हो गई। अपराध था चोरी का। यह एक सामान्य नियम है-फांसी देने से पूर्व चोर की अंतिम इच्छा पूरी की जाती है। चोर ने कहा-'मैं अपनी मां से मिलना चाहता हूं।' मां को बुलाया गया। चोर मां की ओर झुका और उसकी नाक को चबा डाला। मां चीख उठी। लोगों ने बेटे के चंगुल से मां को छुड़ाया। चोर को डांटते हुए लोग बोले-'मूर्ख! क्या किया?' कम से कम मां के साथ तो ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए। चोर ने कहां-'महाशय! आप नहीं जानते। यह फांसी आप नहीं दे रहे हैं, मेरी मां के कारण मिल रही है। लोग यह सुनकर अवाक रह गए। उन्होंने विस्मय से पूछा-'यह कैसे कह रहे हो तुम?' चोर ने कहा-'जब मैं छोटा बच्चा था, स्कूल में पढ़ता था तब दो बढ़िया पेंसिलें चुरा कर लाया। मैंने मां को दिखाई।' मां ने मेरी पीठ थपथपाते हुए शाबासी दी। मेरा साहस बढ़ा। मैं चोरी करता रहा, मां शाबासी और प्रोत्साहन देती रही। उसका यह परिणाम आया कि मुझे फांसी के फंदे पर लटकना पड़ रहा है। यदि मां मुझे पहले दिन टोक देती, रोक देती और कहती-बेटा! तुमने यह अच्छा काम नहीं किया, मेरे दूध को लजाया है तो मैं कभी चोर नहीं बनता, मुझे ऐसी मौत नहीं मरना पड़ता।' क्षण का सुख : वर्षों का दुःख दुनिया भोगों को प्रोत्साहित करती है, समर्थन देती है किन्तु जब भोगों का परिणाम भुगतना पड़ता है तब वह किसे अच्छा लगता है? उस समय भोग की प्रेरणा देने वाला अच्छा लगेगा या त्याग की प्रेरणा देने वाला। इस बिन्दु पर यह चिन्तन उभरता है-धर्म का मार्ग एक अलौकिक मार्ग है, त्याग का पथ है। यह पहले अच्छा न भी लगे पर परिणाम में बहुत अच्छा लगता है। इस तथ्य के संदर्भ में यह सच है जो केवल भोग की बात को लेकर चलता है या चलाता है वह दुःख की ओर ले जाता है। उस मार्ग में थोड़ा सुख है और बहुत दुःख। इस सचाई का प्रत्येक व्यक्ति अनुभव कर सकता है। एक आदमी कुछ दिनों के अंतराल से दर्शन करने आया। मैंने पूछा-'भाई! क्या बात है?' उसने कहा-'महाराज! मैं कुछ अस्वस्थ्य हो गया था।' मेरे आम की बीमारी रहती है, पेट ठीक नहीं रहता है। एक दिन कुछ ज्यादा खा लिया इसलिए यह बीमरी उग्र बन गई। 'तुमने ज्यादा क्यों खाया?' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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