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महावीर का पुनर्जन्म
नहीं फंसना है। हमें उस निर्वाण के सुख को प्राप्त करना है, जो कभी दुःख में नहीं बदलता । शाश्वत सुख का स्थान है मोक्ष । हमारा लक्ष्य वही है ।
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राजपुरोहित भृगु पुत्रों के तर्क सुनकर स्तब्ध रह गया। उसने सोचा- आज सारा चक्का उलटा घूम रहा है। मैं सोचता था— मैं इनका पिता हूं और ये मेरे पुत्र हैं। पर आज ऐसा लग रहा है- ये मेरे पिता बन गए हैं और मैं इनका पुत्र । सचमुच चक्का घूम गया । पुत्रों को समझाने वाला पिता स्वयं समझ गया। वह निःशब्द हो गया। उसका मौन सम्मति बन गया— मौनं सम्मति लक्षणम् । और उनके बीच जो वार्तालाप हुआ वह बन गया- दो परम्पराओं के बीच सीधा संवाद |
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