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महावीर का पुनर्जन्म
माता-पिता समझ नहीं पाए। एक दिन में ही यह क्या हो गया? एक दिन में ही इतना बदलाव कैसे आ गया? कल तक बात ही नहीं थी, आज सब कुछ बदल गया, हुआ क्या? माता-पिता बोले-'तुम भिक्षा भी मांग लोगे! अहंकार तुमने छोड़ दिया है पर जरा यह भी सोचो-आदमी को वही करना चाहिए, जिसमें कोई न कोई रस हो। बालु को कोई खाए तो कैसा स्वाद आता है, उसमें कोई स्वाद नहीं होता। एक कण भी कवल के साथ आ जाए तो उसे थूकना पड़ता है। कितना निःस्वाद है। साधुपन भी ऐसा ही नीरस है। कितना सरस है यह जीवन! इसमें रस ही रस है। परमात्मा क्या है? जो रस है, वही परमात्मा है। यह नीरस जीवन अच्छा नहीं लगता। साधुपन बालू की तरह बिल्कुल नीरस
निराशावाद
पश्चिमी लोग भारतीय दर्शन पर यह आरोप लगाते हैं-भारतीय दर्शन निराशावाद या नीरसवाद है। कहीं सरसता है ही नहीं। जीवन को सुखाओ, जीवन को नीरस बनाओ। कोरा पलायनवाद है। यह आरोप उन्होंने ही नहीं, मृगापुत्र के माता-पिता ने भी लगाया-'बेटा! यह श्रामण्य बालू खाने की तरह नीरस है। इस नीरस मार्ग को चुनकर तुम क्या करोगे?'
_माता-पिता ने अनेक तर्क प्रस्तुत किए- 'देखो! तुम अपने को तोलो। तुम्हारी शक्ति कितनी है! तुम इसमें सफल कैसे बनोगे? हमें कोई कठिनाई नहीं है। तुम भले ही साधु बनो, हम मनाही नहीं करेंगे। पर ऐसा न हो जाए-तुम कल फिर विचलित हो जाओ।
मुनि बनने वाले व्यक्ति के सामने आज भी यह तर्क आता है-साधु बन रहे हो, हमें कोई कठिनाई नहीं है। यदि भविष्य में साधु जीवन के कष्टों को न सह पाए तो क्या होगा? इस तर्क के पीछे चिन्ता शायद भविष्य की नहीं होती, चिंता वर्तमान मूर्छा की होती है।
माता-पिता की भी यही चिन्ता थी-आगे क्या होगा? कैसे सफल बनोगे? कितना कठोर मार्ग है! तुम जरा इस पर ध्यान दो। साधुपन में निरन्तर एक दृष्टि से रहना है। सांप एक दृष्टि वाला होता है। सांप में त्राटक की शक्ति बड़ी तेज होती है। अनिमेष दृष्टि सांप में जितनी तेज होती है उतनी साधना शायद आदमी के लिए भी कठिन है। अजगर शिकार के लिए जाता नहीं है, पर उसकी ष्टि के सामने कोई आ जाता है और यदि वह उसकी ओर दृष्टि फेंक देता है तो व्यक्ति सम्मोहित हो जाता है, उसके लिए शिकार बन जाता है। सांप भी ऐसा ही होता है। वह जिस पर दृष्टि डाल देता है, खतरा बन जाता है। कछ सर्प ऐसे होते हैं, जिन्हें हम दृष्टिविष सर्प कहते हैं। दृष्टिविष का एक अर्थ यह है-सांप ने अपनी अनिमेष दृष्टि से जिस पर त्राटक कर लिया और वह व्यक्ति उसकी रेंज में चला गया तो आगे नहीं सरक पाएगा, उसे वहीं का वहीं रहना पड़ेगा। जो जानकार लोग होते हैं, वे सांप की सीध में नहीं जाएंगे, टेढ़े-मेढ़े जाएंगे। वे उसकी दृष्टि के सामने नहीं आएंगे। कई सर्प ऐसे होते हैं कि उनकी
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